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________________ आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। चोर होगा तो भी हर्ज नहीं है या चोर नहीं है तो भी हर्ज नहीं है । १६४ प्रश्नकर्ता : तो फिर यह वाक्य ऐसा हुआ न कि जगत् वीतराग दिखाई दे तो निबेड़ा आ जाएगा ? दादाश्री : जगत् वीतराग है ऐसा नहीं कह सकते । जगत् निर्दोष है, ऐसा कह सकते हैं । निर्दोष दिखाई देने लगता है यह जगत्। प्रश्नकर्ता : यह सब जो दिखाई देता है, वे सब मिकेनिकल प्रक्रियाएँ हैं । दादाश्री : वह समझने लगता है कि इसी को वीतराग कहते हैं न! ऐसा नहीं कहा है कि 'भाई ये टेपरिकॉर्डर बोल रहा है न!' सारी क्रियाएँ उसी जैसी हैं । 'जगत् निर्दोष है ! भुगते उसी की भूल है !' यह सब क्या सूचित करता है ? जगत् निर्दोष दिखाई दे तो ऐसा ही कहा जाएगा कि उसे वीतराग दिखाई दिया। वीतराग के सिवा अन्य कोई निर्दोष हो ही नहीं सकता। आपको समझ में आया क्या यह वाक्य ? प्रश्नकर्ता : हाँ। ठीक से समझ में आ रहा है I 'मैं' और 'मेरा' जाने पर वीतराग दादाश्री : इस मिश्रचेतन में जो मैं पन है, मेरापन है उसे अगर निकाल दिया तो यह मिश्रचेतन वीतरागी हो जाएगा । मैं और मेरापन निकाल दिया तो वीतरागी बन जाएगा। प्रश्नकर्ता : वह तो तभी हो सकता है न, जब यह ज्ञान हो ? दादाश्री : हाँ, लेकिन यों भी वीतरागी ही है लेकिन मैं और मेरेपन की वजह से ही राग-द्वेष हैं । यदि मैं और मेरापन का उपयोग नहीं करे, तब अगर यह ज्ञान नहीं होगा फिर भी वीतराग ही है ।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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