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________________ [२.५] वीतरागता १६३ दादाश्री : हाँ, ऐसा यदि समझ में आ जाए तो वह संपूर्ण वीतराग बन जाएगा। प्रश्नकर्ता : ऐसा किस दृष्टि से समझ में आएगा? दादाश्री : यह बात वैसी ही है लेकिन वह बात समझ में आनी चाहिए। यदि खुद संपूर्ण वीतराग हो जाएगा तो जगत् वीतराग दिखाई देगा। इस प्रकार दृष्टि परिवर्तन हो जाए तो काम ही हो जाएगा न! ___500 गायें जा रही हों तो हमें वे सब एक जैसी ही लगती हैं न! वीतराग नहीं रहते क्या? एक सरीखी ही लगती हैं न? प्रश्नकर्ता : हाँ, एक सरीखी ही लगती है। दादाश्री : यह सारा झंझट तो हमें सिर्फ मनुष्यों के प्रति ही है न! और उसमें भी आप अमरीका वगैरह दूसरी सभी जगहों पर वीतराग ही हो न। यह सारी झंझट आपकी फाइलों तक ही है न। कहाँ-कहाँ झंझट है? प्रश्नकर्ता : फाइलों के लिए ही। दादाश्री : और फाइलें तो आपको हिसाब चुकाने के लिए ही मिली हैं और वे वीतराग ही हैं। प्रश्नकर्ता : आपने जो कहा कि, 'पूरा जगत् पूर्णत: निर्दोष है', वह... दादाश्री : 'निर्दोष है', वह तो वीतराग रास्ता है लेकिन वीतरागता नहीं कहेंगे। वीतराग कहेंगे तो वह वीतरागों की विराधना कहलाएगी। वीतराग का अर्थ तो भगवान है। अतः निर्दोष कहते हैं। प्रश्नकर्ता : आपने अभी जो कहा न कि इसमें रिकॉर्ड बोलती है, 'तुम चोर हो, चोर हो' तो दादा, ऐसा विचार आता है कि वास्तव में मैं क्या हूँ? ऐसा जानने की इच्छा होती है और अंदर उतरकर और ढूँढ निकालना है कि चोर है या नहीं, उसका पृथक्करण करने की इच्छा होती है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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