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________________ १६० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) कि, 'दादा आपको दुनिया कैसी दिखाई देती है ?', मैंने कहा, 'मुझे सूरज गिरा हुआ दिखाई देता है'। अरे पागल है क्या? कोई भान है ? मुझे क्या तुझसे कुछ अलग तरह का दिखाई देता होगा? तुझे जो दिखाई देता है उसमें तुझे राग-द्वेष है और मुझे उसमें राग-द्वेष नहीं है। बस, इतना ही फर्क है। तुझे जो दिखाई देता है, वैसा ही मुझे दिखाई देता है। और दूसरा, जो तुझे नहीं दिखाई देता, वैसा सब मुझे अनंत दिखाई देता है। वह मेरे ज्ञान की विशालता है और ऐश्वर्यपना है। लेकिन तुझे तेरे ऐश्वर्य के अनुसार दिखाई देता है। तेरी सीमा के अनुसार, कम्पाउन्ड के अनुसार। ऐश्वर्यपना अर्थात् कम्पाउन्ड। पूरा जगत् अपना कम्पाउन्ड बन जाए तो वह ऐश्वर्यपना है, पूर्ण! वीतरागता कब और किस प्रकार से प्रकट होती है? प्रश्नकर्ता : हम महात्माओं में संपूर्ण वीतरागता कब प्रकट होगी? दादाश्री : एक से शुरू करके 100 तक लिखना शुरू करें तो क्या एकदम से 100 आ जाएगा? प्रश्नकर्ता : नहीं आएगा। दादाश्री : अर्थात् 20 लिखने के बाद फिर 21, 22, 23, 24... हमें यह देखना है कि आगे लिखा जा रहा है या नहीं। यानी वह तो पूर्ण हो जाएगा। वही पूर्ण कर रहा है। हमें पूर्ण करने की ज़रूरत नहीं है। वह स्पीड ही इसे पूर्ण करेगी। ___ सब से पहले यह देखना है कि राग-द्वेष कैसे कम हों। अब पल्टी खाई है उल्टेपने से सीधेपने में, अतः अब वीतरागता कैसे बढ़े, पूर्ण हो, उस तरफ दृष्टि गई। पहले राग-द्वेष कम करने की दृष्टि थी। पूरा जगत् राग-द्वेष कम करने के लिए ही झंझट करता है न! पूरे दिन कितना दुःख, कितनी चिंता, कितनी वरीज़! भयंकर त्रिविध ताप। वीतरागता कैसी है आपमें? थोड़ी, ज़रा सी वीतरागता। एक अंश
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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