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________________ [2.5] वीतरागता राग में वीतराग ज्ञानियों का समभाव जगत् ने देखा ही नहीं है इस दूषमकाल में, पाँचवें आरे में। समभाव और राग में वीतराग। यह तो, इन्हें तो... वीतरागता में वीतराग। अरे भाई, ऐसा नहीं हो सकता, अगर राग में वीतरागता रहे तो वह वास्तविक वीतरागता है। लेकिन आप तो राग के बिना वीतरागता करने लगे। अरे भाई, बीज तो है नहीं। फिर आधार किसका? किसी आधार की जरूरत पड़ेगी या नहीं पड़ेगी? तो कहते हैं, 'सभी राग छोड़ दो' लेकिन फिर वीतरागता किस तरह लाओगे? राग तो अगर ज्ञानी पर आ जाए तो, प्रशस्त राग, वही मोक्ष में ले जाएगा। जो आपका दीवाना राग था, अप्रशस्त राग था, ज्ञानी से मिलने की वजह से वह प्रशस्त हो गया। वही मोक्ष में ले जाएगा। मोक्ष में जाने के लिए प्रशस्त राग की ज़रूरत है या नहीं? प्रश्नकर्ता : ज़रूरत है, ज़रूरत है। दादाश्री : वही मुख्य ज़रूरत है इसीलिए तो इन दादा पर तो सभी को ज़बरदस्त राग है। हाँ, भले ही रहे वह राग! उसमें हर्ज नहीं है। वह मोक्ष में ले जाएगा। प्रश्नकर्ता : दादा उसे, ज़बरदस्त की उपमा दी जा सकती है? दादाश्री : कहा जा सकता है, कहा जा सकता है। इस काल में ऐसा कहना पड़ता है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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