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________________ [२.३] वीतद्वेष दादाश्री : तब द्वेष होता है। अतः पहले अगर द्वेष चला जाए तो फिर राग चला जाएगा। अभी आपका द्वेष चला गया है। किसी पर द्वेष नहीं होता लेकिन राग तो रहेगा लेकिन वह निकाली राग है। यहाँ पर महात्माओं को तो निकाली द्वेष भी नहीं है। प्रश्नकर्ता : मुझे अभी तक यह ठीक से समझ में नहीं आया कि द्वेष में से राग होता है। बच्चे को देखकर सब से पहले तो राग ही होता है न हमें। दादाश्री : जहाँ द्वेष हुआ हो वहीं पर राग होता है, नहीं तो राग हो ही नहीं सकता। प्रश्नकर्ता : पूर्व जन्म के किसी कर्म के कारण द्वेष हुआ होगा? दादाश्री : उसी के परिणाम स्वरूप यह राग होता है। उस पर बहुत ही द्वेष रहा होगा न तो इस बार बेटे के यहाँ बेटा बनकर गोदी में खेलने आता है और फिर हम उसे चूमते हैं। 'अरे भाई, यह तो पसंद नहीं था न, तो क्यों चूम रहा है?' राग में से द्वेष, द्वेष में से राग क्लेश का कारण द्वेष है। अतिशय राग हो जाए तब नापसंदगी हो जाती है। कुछ हद तक का परिचय राग में परिणामित होता है और 'रिज पोइन्ट' आने के बाद जब आगे बढ़ते हैं तो द्वेष में परिणामित होता है। जब द्वेष होता है, उसी समय राग के कारणों का सेवन होता है और इन सभी की जड़ में जो राग-द्वेष हैं, वे 'इफेक्ट' हैं और जो अज्ञान है, वह 'कॉज़' है! प्रश्नकर्ता : एक जगह आप्तवाणी में पढ़ा है कि 'राग से द्वेष के बीज डलते हैं और द्वेष से राग के बीज डलते हैं, यह ज़रा समझाइए। ऐसा कैसे होता है? दादाश्री : क्यों? नहीं तो क्या लगता है आपको?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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