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________________ १०६ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : अच्छा लगे अर्थात् आइ लाइक और बहुत अच्छा लगे तो उसमें वेरी लाइक। उसमें कोई फर्क नहीं है। इससे राग नहीं होता। अपना ज्ञान देने के बाद फिर राग होता ही नहीं है। हमारी आज्ञा का पालन करने से राग नहीं होता। राग भी नहीं होता और द्वेष भी नहीं होता और राग-द्वेष से ही संसार कायम है। अपना ज्ञान मिलने के बाद राग-द्वेष नहीं होते और जो क्रोध-मान-माया-लोभ होते हैं, वे राग-द्वेष रहित हैं। उनमें से एक्सट्रैक्ट निकल चुका है। जिस तरह अगर दालचीनी में से एक्सट्रैक्ट खींच लिया जाए न तब भी वह कहलाती है दालचीनी ही लेकिन उसमें दालचीनी के गुण नहीं होते, वह सिर्फ लकड़ी ही होती है। उसी तरह इसमें भी एक्सट्रैक्ट निकल चुका है। __ जिसमें अहंकार मिश्रित हो, वे राग-द्वेष कहलाते हैं। डिस्चार्ज राग-द्वेष को पसंदगी-नापसंदगी कहते हैं। अतः यदि कोई चीज़ हमें अच्छी लगती है और कोई चीज़ पसंद नहीं है तो वह राग-द्वेष नहीं है। पसंद-नापसंद डिस्चार्ज हैं। अगर राग-द्वेष होते तब तो कर्म बंधन हो ही जाता। पसंद में अहंकार मिल जाए तब वह राग कहलाता है। ऐसा नहीं है कि पसंद-नापसंद सिर्फ आप ही को हैं, हमें भी हैं। अगर कोई यहाँ गद्दी पर नहीं बैठा हो तो हम यहाँ अंदर आकर सीधा गद्दी पर ही बैठ जाएँगे। यहाँ नीचे नहीं बैठेंगे। तब अगर कोई कहे कि क्या आपको गद्दी पर राग है ? 'नहीं।' तब अगर वह कहे, 'आप यहाँ नीचे बैठ जाइए' तो हम वहाँ पर बैठ जाएँगे। हमें द्वेष नहीं है लेकिन फिर भी लाइक और डिसलाइक बचे हैं। पहले तो हम यही लाइक करेंगे लेकिन अगर कोई यहाँ से उठा दे तो हमें द्वेष नहीं होगा लेकिन (पहली बार में) बैठेंगे तो यहीं पर। वे कर्म कहीं बंधेगे नहीं। भाए या न भाए तो उसमें दखल किसकी भोजन खा लेने के बाद फिर याद न आए, वह इसलिए है क्योंकि राग-द्वेष चले गए हैं। प्रश्नकर्ता : भोजन में भी लाइक-डिसलाइक होता है न? भोजन में भी यह पसंद है और यह नहीं पसंद, ऐसा होता होगा न?
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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