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________________ ९८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) पाएगा। यहाँ मेरी हाज़िरी में लड़ो तो इसका हल आ जाएगा। साफ हो जाएगा न यह सब। फाइलें क्लियर हो जाएँगी। अपने सभी महात्मा मानो, जैसे वीतराग ही हैं। व्यापार करते हैं, लड़ाई-झगड़ा करते हैं, फिर भी वीतराग हैं। यह उन्हें पता नहीं चलता फिर भी मुझे तो पता चलता है न! आपको पता नहीं चलता? आपको मन में ऐसा लग सकता है कि 'अरे, किस प्रकार से वीतराग हूँ ?' लेकिन मुझे तो पता है न! क्योंकि डॉक्टर तो जानता है। मरीज़ के मन में ऐसा लगता है कि, 'अरे यह दर्द बढ़ा या घटा?' वहम होता है लेकिन मुझे तो पता है न कि क्या दवाई दी है। इन्हें ऐसा लगा कि इनमें बढ़ा या घटा तो तुरंत इसे दवाई बता दी न! सभी जगह राग-द्वेष, राग-द्वेष, रागद्वेष, चाहे किसी भी धर्म में जाओ, राग-द्वेष रहित नहीं है। संतों पर राग और नालायक पर द्वेष! और क्या! एक व्यक्ति ने मुझसे कहा, 'मैं गुरु के आश्रम में गया था, वहाँ पर मुझे राग-द्वेष नहीं हैं न?' मैंने कहा, 'वहाँ पर भी बहुत सारे, यहाँ जितने ही वहाँ पर भी हैं। क्योंकि जब तक तेरे पास राग-द्वेष हैं तब तक वे होते रहेंगे, चाहे तू किसी भी जगह पर जा। जगह क्या करेगी इसमें? तेरे पास पूँजी ही राग-द्वेष की है। तू यदि जगह बदल देगा तो भी पूँजी तो पूँजी है, बोलेगी ही। मैंने आपके पास पूँजी रहने ही नहीं दी, तो फिर चाहे किसी भी जगह पर जाओ लेकिन राग-द्वेष होंगे ही कैसे? 'मैं' और 'मेरा', वही राग-द्वेष हैं। 'मैं' और 'मेरा' नहीं रहेगा तो राग-द्वेष कहाँ से होंगे? जिनमें 'मैं' और 'मेरा' नहीं हो, ऐसे कौन से साधु-संत बचे हैं? आपका 'मैं' और 'मेरा' है तो ज़रूर लेकिन ड्रामेटिक है। तब फिर, ड्रामा में राग-द्वेष नहीं होते, चाहे कितना भी लड़ाई-झगड़ा करें, मारा-मारी करें, गालियाँ दें, फिर भी राग-द्वेष नहीं रहते। राग-द्वेष रहित जगह यदि देखनी हो तो वह देखना। आपने ड्रामा नहीं देखा? नहीं? राग-द्वेष हैं व्यतिरेक गुण प्रश्नकर्ता : यों तो राग-द्वेष व्यतिरेक गुण कहलाते हैं।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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