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________________ [२.१] राग-द्वेष ९७ दादाश्री : हाँ। यदि एक भी परमाणु होता तब तो फिर वह सम्यक् दृष्टि कैसे हो सकती है? हाँ। और नहीं तो क्या! आप सम्यक् दर्शन वाले हो। इनका लिखा हुआ गलत है या आपका? प्रश्नकर्ता : यह लिखा हुआ सही है। दादाश्री : मेरा दिया हुआ हंड्रेड परसेन्ट सही है। मैंने जो सम्यक् दर्शन दिया है, हंड्रेड परसेन्ट सही है और इसमें जो लिखा हुआ है, वह भी सही है तो यह ढूँढ निकालो कि भूल किसकी है। अब आप चंदूभाई हो या शुद्धात्मा हो? प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा। दादाश्री : तो शुद्धात्मा में राग या द्वेष का एक भी परमाणु नहीं बचा है। तो आपको संपूर्ण शुद्धात्मा बना दिया है पद में, तो तब फिर ऐसा क्यों कर रहे हो? आपको हंड्रेड परसेन्ट उस पद पर बिठा दिया है न, जहाँ पर किंचित्मात्र भी राग-द्वेष, क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं हैं। आपको समझ में आ गई न यह अंटी? यह तो आपकी जो पहले की आदत है न, वह जाती नहीं है। आदत में ऐसा, कि यह मुझे ही हो गया। यह तो गारन्टेड है। यह कोई ऐसी-वैसी चीज़ नहीं है। यह गारन्टेड मोक्ष दिया हुआ है। हाथ में मोक्ष दिया हुआ है लेकिन जिसे जितना भोगना आए उतना उसके बाप का। लड़ते-करते हैं तो भी वीतराग राग-द्वेष ही संसार है। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद यदि आज्ञा का पालन किया जाए तो आज्ञा पालन करते ही राग-द्वेष बिल्कुल खत्म हो जाते हैं। यानी कि यहाँ राग-द्वेष नहीं रहते। और अगर वह बच्चों को मार रहा हो तब भी हम कहते हैं कि यह मोक्ष में ही है। अभी अगर आपके साथ बस में महात्मा आएँ, चार सौ-पाँच सौ लोग हों बसों में, तो अगर वे लड़ाई-झगड़ा करें तो हम तो उन्हें आशीर्वाद देंगे। कहेंगे, 'लड़ना, मेरी हाज़िरी में लड़ना'। गैरहाज़िरी में ऐसा छूट कारा नहीं हो
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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