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________________ [१] प्रज्ञा स्थितप्रज्ञ दशा भी नहीं हुई है क्योंकि लोगों को स्थितप्रज्ञ किस प्रकार से होता है ? उसे ऐसा लगता है कि 'मैं आत्मा हूँ' कुछ देर के लिए उसमें स्थिर रह पाए और फिर वापस विचलित हो जाए, तो वह स्थितप्रज्ञ है। प्रज्ञा में स्थिर होने जाता है और वापस विचलित हो जाता है। उसमें निरंतर रह ही नहीं पाता न! पूरा साइन्स हाथ में नहीं आता न! क्योंकि चार वेद पढ़ने के बाद वेद इटसेल्फ कहते हैं, 'दिस इज़ नॉट देट। दिस इज नॉट देट। दिस इज नॉट देट'। तो व्हॉट इज़ देट? तब कहते हैं 'गो टू ज्ञानी'। क्योंकि उस अवक्तव्य, अवर्णनीय को शब्दों में कैसे उतारा जा सकता है ? आत्मा शब्दों में कैसे उतारा जा सकता है ? इसलिए उसे अवक्तव्य कहा है, अवर्णनीय कहा है। जो नहीं खाता, नहीं पीता और नहीं बोलता, वह है आत्मा प्रश्नकर्ता : स्थितप्रज्ञ की भाषा क्या होती है? वह किस प्रकार का भोजन खाता है और क्या पीता है ? दादाश्री : स्थितप्रज्ञ की दशा बहुत उच्च है, भाषा उच्च है लेकिन उसमें कभी टेढ़ा भी बोल लेता है। लो! क्या खाता है ? उस दशा का और खाने-पीने का लेना-देना ही क्या है? क्योंकि खाने वाला तो बिल्कुल अलग ही है। खाने वाला मुक्त होने वाले से बिल्कुल अलग ही है। जो बंधा हुआ है, खाने वाला उससे बिल्कुल अलग है। जो मुक्त होने की इच्छा रखता है, खाने वाला उससे भी अलग है। फिर उसे लेना-देना ही क्या है खाने वाले से? यह सूक्ष्म बात कौन बताए? कोई बता सकता है? आपको क्या लगता है? अलग है या नहीं? प्रश्नकर्ता : अलग है। दादाश्री : खाने वाला अलग ही है इसीलिए तो हमने भेद बताया। भाई, कोई परेशानी नहीं है। आप जो भी खाते हो, उससे हमें कोई परेशानी नहीं है। तो कहते हैं 'कपड़े पहनें?' 'फर्स्ट क्लास कपड़े पहनना'। शरीर ही पहनता है न?' इयरिंग भी पहनना। 'बालियाँ पहनें?' तो कहा 'बाली भी पहनना'। ये इस प्रकार से अलग हैं, ऐसा देखने के
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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