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________________ [९] पोतापणुं : परमात्मा ४७५ प्रश्नकर्ता : यों दर्शन में क्या आता है उसे? एक उदाहरण बताइए न कोई। दादाश्री : यह पत्थर अलग और मेरा हाथ अलग, ऐसा पता नहीं चलता अपने को? फिर, ये पत्थर के गुण हैं और ये मेरे गुण हैं, ऐसा? प्रश्नकर्ता : हाँ। पत्थर के गुणों को हर प्रकार से जानता है कि यह वज़नवाला है, ठंडा है, चौकोर है.... दादाश्री : चिकना है। प्रश्नकर्ता : तो, ये गुणधर्म मेरे नहीं हैं और ये गुणधर्म मेरे हैं, उसमें उसे किस तरह से रहना चाहिए? दादाश्री : कि यह ठंडा मेरा नहीं है, यह चिकना मेरा नहीं है, यह गुस्सा हुआ वह मेरा नहीं है, कपट किया वह मेरा नहीं है, दया की वह मेरा नहीं है! हम बिस्तर में सो जाएँ, तो क्या ऐसा पता नहीं चलता कि 'मैं अलग हूँ'? पता चलता है ? प्रश्नकर्ता : वहाँ तो समझ में आता है कि बिस्तर और सोनेवाला वास्तव में अलग ही हैं लेकिन इसे यह आत्मा और यह पौद्गलिक अवस्था, ऐसे दोनों अलग हैं, वह जो जागृति में रहना चाहिए अथवा जो उपयोग जागृति रहनी चाहिए, वहाँ पर परेशानी है न? दादाश्री : बिस्तर के बारे में कुछ जागृति है लेकिन आत्मा के बारे में तो जागृति खत्म ही हो चुकी है न! बिस्तर की बात उसे पता चलती है। प्रश्नकर्ता : वह भी जब उसे याद दिलाएँ तब कहेगा, 'हाँ, दोनों अलग है।' दादाश्री : उसे तो जब प्रमाण सहित हूँ, तब वह मानेगा। प्रश्नकर्ता : तो ऐसा अंदर की चीजों में सभी ‘फेज़िज़' में 'नहीं
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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