SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देता। कपट मतलब ढंकना, जो उल्टे रास्ते पर ही ले जाता है। कपट और अहंकार - क्रोध-मान-माया-लोभ ही उल्टे रास्ते पर ले जाते हैं। जब किसी भी प्रकार के कपट का अंश नहीं रहता, विषय का विचार तक नहीं आता, कषाय निर्मूल हो जाते हैं, तब जागृति 'ज्ञान' में परिणामित होती है। ज्ञानीपुरुष का आसरा छूटा कि कषाय वंशावली के साथ चढ़ बैठते हैं। अरे! कषाय तो चाहे किसी भी तरीके से ज्ञानी का आसरा छुड़वाने में लगे रहते हैं। ज़रा सी मिठास लगी कि कषायों को खुराक मिल गई। कषायों को तीन वर्ष तक नाम मात्र की भी खुराक नहीं मिलेगी, तब वे निर्वंश होंगे लेकिन यदि ज़रा सी खुराक मिली कि वापस तगड़े हो जाएंगे! ज्ञानीपद तब मिलता है कि जब कभी भी कषाय को खुराक न मिल पाए। इतनी अधिक जागृति की ज़रूरत है। ज्ञानी का आसरा हो, तभी कषायों को जीता जा सकता है। उनका आसरा नहीं छोड़ना चाहिए। ज्ञानीपुरुष जब तक सर्टिफाई न करें, तब तक उपदेश दिया ही नहीं जा सकता। अंदर तो सभी दोष तैयार ही बैठे हुए हैं, वे तुरंत हावी हो जाएँगे। सभी गुणों के क्षायक होने के बाद अपने आप ही वह पद आएगा! जागृति तो उसे कहते हैं कि चोर न घुस पाए। खुद का हर एक दोष दिखाई दे। अहंकार भी दिखाई दे। वह अहंकार यहाँ है ही और वह गर्वरस चखवाता है। ज़रा सा किसी ने कहा कि आपने बहुत अच्छा किया कि तुरंत ही गर्वरस चख लेता है। वही फिर गिरा देता है न! यह मीठा है, यह कड़वा है - जहाँ ऐसा भेद खत्म हो जाए, वहाँ पर ज्ञान है। ज्ञानीपुरुष के अलावा अन्य किसी को सत्संग में किसी के प्रश्नों का खुलासा नहीं करना चाहिए। सिर्फ साधारण बातचीत की जा सकती है लेकिन खुद अपने आपको ज़रा सा भी विशेष माना कि समझो विष चढ़ गया! जैसे-जैसे जागृति बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उपशम कषाय क्षय होते 41
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy