SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जब तक गर्वरस चखते हैं, तब तक स्यादवाद वाणी भी नहीं निकलती। यानी कि बुद्धि में, अहंकार में रुचि नहीं होनी चाहिए। अहंकार नहीं निकले और उपदेशक बन बैठे तो सामनेवाले को कोई फायदा नहीं होगा। उसके कान को अच्छा लगेगा इसलिए वाह-वाह करेगा, लेकिन उससे उसे खुद को भयंकर नुकसान होगा। अहंकार ही पूरी खुराक खा जाएगा और पूरा मोक्षमार्ग चुकवा देगा! अक्रम मार्ग में उपदेशक होने की इच्छा रखनेवालों को ज्ञानीपुरुष लालबत्ती दिखाते हैं कि 'अपने इस ज्ञान का सिर्फ एक बाल जितना भी कहने जाएँगे तो लोग टूट पड़ेंगे। लोगों ने ऐसी शांति देखी ही नहीं है, ऐसा सुना ही नहीं है इसलिए टूट ही पड़ेंगे न! लेकिन वह अहंकार अंदर बैठा-बैठा हँसता रहेगा।' पूर्णाहुति करनी हो तो किसी जगह पर, कोई पूछे तब भी कमज़ोर मत बनना। जब तक बुद्धि का क्षय नहीं हो जाए, अहंकार का क्षय नहीं हो जाए, पौद्गलिक इच्छाएँ खत्म नहीं हो जाएँ, विषय का विचार तक भी आता है तब तक दबी हुई अग्नि ही है। वह कब भभक उठेगी, वह कहा नहीं जा सकता। उपशम हो चुके कषाय जब तक क्षय नहीं हुए हैं, तब तक उपदेश में पड़ना भी भयंकर जोखिम है। जब तक खुद को अपने आप के लिए पक्षपात है, तब तक खुद की भूलों का पता नहीं चलता। वह सिर्फ मूर्छा में ही रखता है। कर्म के उदय के थपेड़े आएँ, तब उदय स्वरूप हो जाता है। जागृति आवरित हो जाती है और उपयोग चूक जाता है। वह तो, अगर ज्ञानीपुरुष के सत्संग में रहे तब फिर वह जागृति वापस आती है। जागृति अलग चीज़ है और ज्ञान अलग चीज़ है। नींद में से जागना वह जागृति कहलाती है। जागृति में कषाय उपशम हो चुके होते हैं। लेकिन ज्ञान तो कब कहा जाएगा कि जब कषायों का क्षय हो जाए। जैसे-जैसे जागृति बढ़ती है, वैसे-वैसे कर्म नहीं बंधते और भीतर एकदम शुद्ध कर देती है। जब तक मान में कपट होता है, तब तक जागृति उत्पन्न नहीं होने 40
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy