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________________ अहंकार के परिणाम बचे हैं। जब अहंकार के सर्व परिणाम खत्म हो जाते हैं तब केवलज्ञान होता है। 'अपने अहंकार के परिणामों से किसी को किंचित् मात्र भी दुःख न हो' ऐसा भाव करना चाहिए। फिर भी अगर किसी को दुःख हो जाए तो उसका प्रतिक्रमण करके आगे बढ़ जाना। मान और स्वमान में क्या अंतर है? मान अर्थात् इगो विद रिच मटीरियल्स और स्वमान अर्थात् खुद की जो क़ाबिलियत है, उतना ही मान। खुद के मान को ज़रा सी भी ठेस न लगे, ऐसा ध्यान रखे, वह स्वमान है। व्यवहार में स्वमान सद्गुण है जबकि मोक्ष में जानेवालों को स्वमान से भी मुक्त होना पड़ेगा। अपमान के समक्ष रक्षण करे, तो वह स्वमान है। अभिमानी तो जो उसके पास होता है, उसी का प्रदर्शन करता है और मिथ्याभिमानी तो कुछ भी नहीं हो फिर भी 'हमारे यहाँ ऐसा है और वैसा है' ऐसी गप्प लगाते रहते हैं। अपमान होने में ही मान को नापने का थर्मामीटर है। अपमान करे और उसका असर हो जाए तो समझना कि ज़बरदस्त मानी है। निर्मानी को ऐसा अहंकार रहता है कि 'मैं निर्मानी हूँ।' निर्मानी होने का अहंकार तो और अधिक सूक्ष्म है ! वह अहंकार भी जब शून्य हो जाएगा तभी काम होगा। ज्ञानीपुरुष सस्पृह-निस्पृह होते हैं। सामनेवाले के पुद्गल के लिए संपूर्ण निस्पृह और उसके आत्मा के लिए संपूर्ण सस्पृह। ज्ञानीपुरुष में उन्मत्तता नहीं होती। लोगों को तो, जेब में ज़रा सी रकम पड़ी हो तो छाती फूल जाती है, वह उन्मत! और ज्ञानी को तो अगर ज़बरदस्त वैभव सामने से आ पड़ें फिर भी, उनमें किंचित् मात्र भी उन्मत्तता नहीं होती। ज्ञानीपुरुष में पोतापणुं नहीं होता। मन-वचन-काया के प्रति पोतापणुं रहता ही नहीं है न! | 30
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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