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________________ अपमान करने वाला उपकारी दिखेगा तो मान का खात्मा होगा। अज्ञानता में अपमान का भय चला जाए तो ढीठ भी बन सकता है लेकिन अगर ज्ञान के बाद अपमान का भय चला जाए तो संपूर्ण स्वतंत्र हो जाता है। मान के अनेक पर्याय हैं। अभिमान, घमंड, तुमाखी, तुंडमिजाज़ी, घेमराजी, मच्छराल, स्वमान, मिथ्याभिमान। अगर कहे कि 'मेरा नाम ललवा है' तो समझना कि सिर्फ अहंकारी है। अगर कहे कि 'मेरा नाम लल्लूभाई है' तो वह मानी भी कहलाएगा। 'मैं लल्लूभाई वकील, मुझे नहीं पहचाना?' वह अभिमानी है। कुछ भी क़ाबिलियत नहीं हो फिर भी कहेगा, 'मैं किसी को भी हरा ढूँ,' वह घमंड है। न तो अक्ल का छींटा, ना ही लक्ष्मी का, फिर भी बेहद बदमिजाज़, वह तुंडमिजाज़ है। तुमाखी वाला तो चाहे कितने भी बड़े सेठ जैसे व्यक्ति को भी दुतकार देता है! हर किसी का तिरस्कार करता रहता है, और खुद से दो मील भी नहीं चला जा सके फिर भी कहेगा कि, 'पूरी दुनिया घूमकर आ जाऊँ।' वह घेमराजी (खुद के सामने दूसरों को तुच्छ समझना) ! 'हम' अलग है, अहंकार अलग है। अहंकार जा सकता है लेकिन 'हम' जल्दी नहीं जाता। जहाँ पर कुछ भी बरकत नहीं हो वहाँ पर 'हम' खड़ा होता है। 'हम' अलग है और 'मैं कुछ हूँ' वह भी अलग! जहाँ पर खुद नहीं है वहाँ पर पोतापणुं (मैं हूँ और मेरा है-ऐसा आरोपण, मेरापन) का आरोपण करना, वही अहंकार है। अहंकार का अस्तित्व हर एक जीव में है ही, ज्ञानीपुरुष के सिवा। विस्तृत अहंकार अर्थात् मान। ममतासहित मान, वह अभिमान है। 'यह मेरा बंगला, यह मेरी गाड़ी' ऐसा प्रदर्शन करना, वह अभिमान है। जहाँ अभिमान है, वहाँ संयम नहीं है और ज्ञान भी नहीं है, वहाँ पर अज्ञान है। 'मैं चंदूभाई हूँ' वही अहंकार है और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' तो वह निअहंकार है। स्वरूपज्ञान के बाद मूल अहंकार चला गया लेकिन 29
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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