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________________ घृणा होगी तब विषय से छुटकारा मिलेगा। जब तक विषय का लालच है, तब तक टकराव होगा ही। अरे, भयंकर बैर भी बंध जाएगा। विषय का लालची अंत में डरा-धमकाकर भी भोग लेता है। विषय का लालच विषय में लाचार बना देता है। उसके बाद फिर पत्नी उसे बंदर की तरह नचाती है लेकिन फिर आमने-सामने बदला लिए बगैर रहेंगे क्या? लालची तो सिर्फ विषय में ही नहीं, लेकिन खाने-पीने में, घूमने में, सभी बातों में लालची होता है। लालच के विचार आने पर उन्हें बदल देना पुरुषार्थ है। तब फिर वह जोखमी नहीं है लेकिन अगर उन्हें बदले बिना जाने दिया तो वह जोखमी है। लालची लालच के मारे चाहे कैसा भी जोखिम मोल ले लेता है। लालची को सभी कुछ चाहिए। जैसे दर्द दवा को खींचता है, उसी प्रकार लालची के पास उसके लालच की सभी चीजें खिंचकर आ जाती हैं। जितने प्रकृति में हैं उतने ही व्यापार करने चाहिए। लालच के मारे आभासी व्यापार करने पर मार पड़ती है। नाशवंत चीज़ों का लालच कैसा? 'इस जगत् की कोई भी विनाशी चीज़ मुझे नहीं चाहिए', ऐसा निश्चय किया कि लालच चला जाता है। लालच जन्मजात चीज़ है और मरने के बाद भी वह बीज साथ में ही जाता है और दूसरे जन्म में वापस फिर वही बीज उगता है। लालच के सामने अहंकार किया जाए, तब वह जाता है लेकिन फिर वापस उस अहंकार को धोना तो पड़ेगा ही। ज्ञानीपुरुष की हाज़िरी में भले ही कैसा भी रोग हो, वह निकल जाता है। लालच में से छूटने का दूसरा उपाय यह है कि ललचाने वाली सभी चीजें बंद कर दे। उन्हें याद ही न करे और अगर याद आए तब भी प्रतिक्रमण करता रहे, तो उसमें से कभी न कभी मुक्त हो सकेगा। 26
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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