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________________ [३] कॉमनसेन्स : वेल्डिंग प्रश्नकर्ता : भाव में रहता है कि वेल्डिंग करना है, लेकिन कर नहीं पाते। पहले मिठास लगती है, लेकिन फिर सहन नहीं होता इसलिए छोड़ देते हैं। २०१ दादाश्री : वह तो फिर भाव रखना है । फिर वेल्डिंग हो सके तो ठीक है, वर्ना भाव रखना और जो कुछ भी हुआ उसमें 'उनका था और उन्हें हुआ' हमें ऐसा रहना चाहिए । वेल्डिंग से सर्वत्र आनंद यानी 'ये सब किस तरह से एक हो जाएँ ? गुत्थियाँ किस तरह से सुलझें ?' ऐसी सब बहुत सारी चीज़ें जानता हो तो, उसे वेल्डिंग करने वाला कहा जाता है । प्रश्नकर्ता : आपकी जो वेल्डिंग है, वह सूक्ष्म लेवल की होती है। लोगों की स्थूल में होती है। दादाश्री : हाँ, ऐसे स्थूल वाले भी बहुत होते हैं । प्रश्नकर्ता : आपका यह गुण मुझे बहुत पसंद आया। आप किस प्रकार से सभी को समझाकर वेल्डिंग करते हैं और अंत में सभी आनंद में आ जाते हैं, ऐसा कर देते हैं । दादाश्री : और सभी आनंद में आ जाते हैं तो उसका फिर मुझे आनंद-आनंद रहता है। कभी किसी का मुँह चढ़ा हुआ हो तो मैं उससे पहले पूछता हूँ कि, ‘क्या है ? ऐसा है, वैसा है ? किस दुःख के कारण मुँह चढ़ा रहा है? मरना तो है ही, तो जीते जी क्यों आनंद में न रहें ? ! अगर मरना ही है, तो उस दिन देख लेंगे लेकिन अभी तो आनंद में रहना है । ' ये तो साल-दो साल दुःख में नहीं होते और बाद में फिर वापस दुःख ही दुःख में। यह शरीर ही ऐसा है पुद्गल का कि दुःख रहता ही है। सिर में दर्द हो तब देह का दुःख नहीं होता ? तब यदि देह का दुःख होता है तो पति का नहीं होगा ? ! लेकिन फिर भी वेल्डिंग हो जाने के बाद दोनों एक हो जाते हैं, तब असली मज़ा आता है !
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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