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________________ २०० आप्तवाणी-९ पर असर ही नहीं होगा न! सामने वाला व्यक्ति तोड़कर मज़बूत करे, वह बात अलग है, लेकिन मैं नहीं तोडूं। मैं बीड़ी नहीं पीता हूँ और सामने वाले से कहूँ कि 'अरे, बीड़ी नहीं पीनी चाहिए' तो फिर वह एक्सेप्ट कर लेगा। ऐसी शक्ति होनी चाहिए न ! किसी से आपकी दोस्ती टूट जाती है और आप लोगों का जोड़ने निकलो, तो आपके अंदर शक्ति ही काम नहीं करेगी न! प्रश्नकर्ता : कभी अगर वेल्डिंग करना नहीं आए तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : योग्यता नहीं हो और फिर हम करने जाएँ तो वह काम का नहीं है न! हो सके उतना करना और नहीं हो पाए तो छोड़ देना। मन में भाव रखना कि यह वेल्डिंग हो जाए तो अच्छा। यों सही तरीके से वेल्डिंग नहीं हो पाए तो भाव रखना चाहिए, लेकिन भाव तो टूटने ही नहीं देना चाहिए। ऐसा तो होना ही नहीं चाहिए न कि 'ये लोग जुदा हो जाएँ तो अच्छा है!' वे साथ में हैं, वे ही दुःख में हैं न! उनके भी मन में तो ऐसा है कि 'यह कहाँ झंझट में फँसे!' और उन्हें वापस हम जुदा करने जाएँ! वह नहीं होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा उस समय समता नहीं रहती। उस समय ऐसा हो जाता है कि 'यह ऐसा कर रहा है ?!' दादाश्री : वह सारी कमी है ! वह कमी है न! वह ऐसा ही करेगा, समय आने पर। साँप को दूध पिलाकर बड़ा करें, पाले-पोसें, फिर उसे एकाध लगाकर देखो! 'मैंने इतने दिनों तक दूध पिलाया है, एक लगा दूँ ।' तो क्या करेगा वह ?! प्रश्नकर्ता : अब, जिसके लिए वेल्डिंग करें, वह यदि विरोधी बन जाए तो ऐसा लगता है कि ऐसा क्यों कर रहा है ?' तो उसे अहंकार से ही वेल्डिंग किया हुआ कहा जाएगा न? दादाश्री : हाँ, अहंकार से ही हुआ है। उसमें से मिठास लेने के लिए।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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