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________________ ४. ममता : लालच छोटा सा जीवन है, उसमें एक मिनट भी क्यों बिगाड़ें? संसार में कहीं भी कीचड़ नहीं छुए, उस तरह से निकल जाना है। जहाँ किंचित् मात्र भी किसी भी प्रकार की अपेक्षा नहीं है, दाग़ नहीं है, वहाँ पर संपूर्ण शुद्धता रहती है, वही ज्ञानी दशा! ज्ञानीपुरुष को देह पर भी ममत्व नहीं होता। ज्ञानीपुरुष अहंकार और ममता रहित होते हैं। ममता अर्थात् 'मेरा' है और इसलिए 'मैं' खड़ा रहता है। ममता का विस्तार तो 'मेरे शरीर' से लेकर 'मेरी पत्नी, मेरा घर, मेरा गाँव, मेरा देश, मेरी दुनिया' तक फैल जाए, ऐसा है। ___ ममता बाउन्ड्री सहित होनी चाहिए। ममता की बाउन्ड्री अर्थात् जब तक हम जीवित हैं, तभी तक उसका अस्तित्व रहता है। उदाहरण के तौर पर यह शरीर, तो इसके आगे की अपनी ममता चली जानी चाहिए, उसके आगे एकलौते बेटे के लिए भी! वर्ना वह विस्तार की हुई ममता दुःखदाई ही है। इन्श्योरन्स करवाया हुआ स्टीमर डूब जाए तो इन्श्योरन्सवाले को कितनी चिंता होती है? ऐसी ममता हो तो वह कोई दुःख नहीं पहुँचाएगी। ___बंगला बेचने के दस्तावेज बन जाने के बाद अगर बंगला जल जाए तो कुछ होगा? नहीं। दस्तावेज के कागज़ों से ममता खत्म हो जाती है तो क्या सही समझ से ममता नहीं जा सकती? वर्ना, बंगला तो कहता है कि 'सेठ, या तो मैं जाऊँगा या फिर तू जाएगा।' संग्रहालय की शर्ते क्या है? अंदर देखने की-घूमने की पूरी छूट है, लेकिन साथ में कुछ नहीं ले जा सकते। उसी तरह इन मनुष्यों को सबकुछ यहीं पर ही रखकर चैन से अरथी में मानपूर्वक सोते-सोते जाना है! ऐसी दुनिया में फिर यह क्या सिरफोड़ी? । जहाँ क्लेश होता है, वह ममता क्या सूचित करती है? जो वाइफ वास्तव में खुद की नहीं है, उसके मरने पर दुःख क्यों होता है? शादी के समय ही मंडप में 'मेरी पत्नी, मेरी पत्नी....' इस तरह 24
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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