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________________ [३] कॉमनसेन्स : वेल्डिंग नहीं आता न! जगत् तो, दो लोग एक हो गए तो भाई कहेगा, 'ये ऐसे हैं।' तब वह भी कहने लगता है, 'हाँ, ऐसे हैं । ' मेरी बात समझ में आनी चाहिए न ?! हमारे परिवार में भी ऐसा हुआ था । वेल्डिंग करते थे तो मार पड़ती थी, और वेल्डिंग नहीं करते थे तो 'आइए चाचा, आइए चाचा' करते थे लेकिन उस मार से सभी ने वैराग दिया न ? ! फिर अंत में इसके सार के रूप में हमें क्या मिला ? वैराग आ गया। वर्ना वैराग आएगा ही नहीं न! इस जगत् के प्रति वैराग कैसे आ सकता है ? ! आपको आता है थोड़ा बहुत वैराग ? और ऐसे वेल्डिंग करने में तो हमेशा मार ही खानी पड़ेगी। यदि वेल्डिंग करोगे तो ! वेल्डिंग करने वाला तो मार ही खाता है, इस दुनिया में। उसके बाद फिर वैराग आता है कि इन दोनों के सुख के लिए वेल्डिंग की न, फिर भी हमें ही मार पड़ी ? ! तो इतनी अधिक हमने मार खाई है, कि बेहद मार खाई है । 4 'भाव' में कमी मत रखना १९७ प्रश्नकर्ता: शुरुआत में मेरी प्रकृति में वेल्डिंग करने का गुण था। फिर मार पड़ी तो वेल्डिंग करना बंद हो गया । I दादाश्री : बंद ही हो जाएगा न ! पूरी दुनिया को ऐसा ही है। खानदानी के घर पर पले-बढ़े व्यक्ति को वेल्डिंग करने का मूल भाव उत्पन्न होता है। फिर जब मार खाता है तो छूट जाता है । वह तो सहन नहीं कर सकता न ! मार पड़ेगी उसमें तो। देखना मार खाने की शक्ति हो, तभी इसमें पड़ना । प्रश्नकर्ता : यों भी कहाँ पर मार नहीं पड़ती। आत्मा का बिगाड़कर मार सहन करनी, इसके बजाय आत्मा का ही नहीं सुधार लें ? दादाश्री : क्योंकि आत्मा तो अंदर समझ ही जाता है कि 'यह मुझे गधा कह रहा है और ऐसा-वैसा कह रहा है।' उसके फल भी मिलते हैं और अगर कोई वेल्डिंग करता है तो आत्मा उसे भी
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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