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________________ १९६ आप्तवाणी-९ दादाश्री : कोई दो भाई यदि चार-पाँच बार लड़ चुके हों, आमनेसामने बहुत घर्षण हो जाता था, तो फिर मैं क्या करता था? दोनों में वेल्डिंग करवा देता था। अब मेरी कीमत फ्रेन्ड के रूप में कब तक अधिक रहती? जब तक वे लड़ रहे होते, तब तक दोनों के आगे अधिक कीमत रहती थी। जब वेल्डिंग कर देता तो, कई जगह पर तो मेरे पैसे भी डूबे हैं। यदि वेल्डिंग नहीं किया होता तो मेरे दिए हुए पैसे हाथ में वापस आ जाते। अब, वेल्डिंग किया, एक ही होकर! लेकिन वे तो एक हो गए, मैं अलग। लेकिन कुदरत तो वह देखती है न! वह हिसाब मैंने चलने दिया। वर्ना मुझे ऐसे कड़वे अनुभव हो चुके हैं, लेकिन हमने तो कुदरत पर छोड़ दिया था न! वेल्डिंग करने से मेरे रुपये भी डूबे हैं। यदि वेल्डिंग नहीं किया होता तो रुपये वापस मिल जाते। तब उनकी पत्नी कहती, ‘इनके रुपये क्यों नहीं दे देते?' यहाँ तो उसकी पत्नी ने भी कुछ नहीं कहा। यह एक उदाहरण आपको समझ में आया? इसी पर से दूसरे उदाहरण सोच सकते हैं? वेल्डिंग करवाने वाले को... और लोग क्या करते हैं? एक बार मार खाए तो वेल्डिंग करना छोड़ देते हैं, दरार ही डालते रहते हैं। ताकि उनका रौब तो रहे ठेठ तक! ऐसे लोग बहुत होते हैं जो कि दरार नहीं डालते लेकिन डली हुई दरार को जोड़ते नहीं हैं, और वह भी खुद अपने रौब के लिए। वर्ना, ऐसे भी लोग होते हैं जो खुद दरार डाल दें, लेकिन ऐसे लोग कम होते हैं। दरार पड़ जाए तो उसमें से खुद का लाभ उठाते हैं, इसलिए फिर वे उस दरार को जोड़ते नहीं हैं और मेरे जैसी भूल शायद ही कोई करता होगा! मैंने तो ऐसा सब जगह पर किया हुआ है। एक जगह पर नहीं, सभी जगह पर मिलाप करवा दिया क्योंकि मेरा काम ही जोड़ने का था, तोड़ने का नहीं न! प्रश्नकर्ता : यह वेल्डिंग तो दादा, बहुत बड़ा विज्ञान है ! दादाश्री : हाँ, विज्ञान बहुत बड़ा है, लेकिन जगत् को माफिक
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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