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________________ ६) अवधिज्ञानी अजितसेन राजर्षि द्वारा किया गया तात्विक वर्णन पूर्वभव में की गई आराधना का वर्णन रसप्रद हैं। ७) गौतम स्वामी नवपद के फलित दृष्टांत के साथ महिमा बताते हैं । ८) अंत में श्री महावीर प्रभुने आत्मा ही अरिहंतादि है, ऐसा निश्चयनय का स्वरुप बताया है। इतनी बार विस्तृत वर्णन करने के साथ श्रोता बार बार सिद्धचक्र की तरफ मुड़े, संस्कार दृढ़ बने, सुषुप्त मन तक असर पहुंचे, इसलिए कदमकदम पर सिद्धचक्र के स्मृति स्थान अरिहंतादि को वर्णित किया है । * श्रीपाल-मयणा आदिनाथ प्रभु के दर्शन करने गए । * उंबर नियमित अभ्यास करते है । * नौ दिन में उंबर को रोग-शांति । * नित्य दर्शन करने जाना । * जिनालय में कमलप्रभा माता से मिलन । * रुपसुंदरी का मिलना, रोना, सही जानकारी पाना । *विदेश प्रयाण करते मयणा-श्रीपाल की बात । *सिद्धचक्र का ध्यान करना। *गिरिकंदरा में साधको के लिए सिद्धचक्र ध्यान । * सिद्धचक्र का ध्यान कर एक गर्जना से देवी को दूर हटाई । रत्नसंचया में मदन-मंजूषा प्रभु की भक्ति करती है। * यहाँ श्रीपाल द्वारा द्वार खुलते है, चैत्यवंदन करते है, चारणमुनि का आगमन, नवपद-वर्णन । * राजा के साथ श्रीपाल की नित्यपूजा । *चैत्री ओली आराधना । समुद्र पतन के समय श्रीपाल के मुख में णमो अरिहंताणं " *श्रीपाल की दो पत्नियों के पास चक्केश्वरी, माणिभद्र आदि का आगमन । *१०० योजन दूर कुंडलपुर में वीणावादन परीक्षा के लिए सिद्धचक्र का ध्यान किया और विमलेश्वर हाजिर हो गए । *विमलेश्वर द्वारा दिए हार के प्रभाव से वामन-कुब्जरुप किया और दो राजकुमारियों से लग्न । *सोपारक नगर में सिद्धचक्र ध्यान और हार के अभिषेक-जल द्वारा साँप के जहर का शमन । * मयणा कहती है कि नवपद-ध्यान के प्रभाव से कोई भय नहीं आता । *मयणा श्रीपाल प्रजापाल से कहते है कि यह प्रभाव श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा 61
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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