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________________ खाली हाथ आने वाला मुझसे कितना आगे निकल गया, यह विचार धवल को परेशान कर रहा है । दिमाग में एक ही फितूर चल रहा है, ''श्रीपाल का सब मेरा हो जाए और इज्जत भी नहीं जाए ।'' मानव प्रकृति कैसी है ? पाप करना है पर छिपकर, ताकि इज्जत नहीं जानी चाहिए । धवल को सज्जन मित्रों की सलाह जंचती नही है। दुर्जन मित्र उसे अकेले में रास्ता दिखाते है, कि श्रीपाल को समुद्र में धक्का देकर डूबा दो । धवल ने योजना बनाकर श्रीपाल को धक्का दे दिया । श्रीपाल को नीचे मृत्यु दिख रही है, पर हाय रे ! ओ बाप रे ! बचाओ ! मेरी पत्नियों का क्या होगा ? संपत्ति का क्या होगा ? ऐसा कोई विचार नहीं आया । उनके मुख से सहज शब्द निकले णमो अरिहंताणं'' सोचिए ! सिद्धचक्रजी कैसे ओतप्रोत हुए होंगे । रक्त की बूंद बूंद में आत्मा के प्रदेश प्रदेश पर कैसे व्याप्त हुए होंगे । आज की भाषा में कहें तो प्रभु स्मरण के संस्कार सुषुप्त मन तक कैसे जाम हो गए है । श्रीपाल को धर्म मिले अभी सिर्फ ६-७ महिने हुए है, पर अरिहंत में कैसे एक-मेक हो गए है । सब खतम रहा है पर कहीं मन नहीं है । हमें तो जन्म से ही प्रभू मिले है, पर हृदय में प्रभु आए है या नहीं ? सही समय पर प्रभु याद आते है या नहीं ? हमारा मन कहाँ है, पैसे में या प्रभु मे ? विभु मे या वैभव में ? इसका पता तो आपत्तिकाल में ही चलता है । जो संपत्ति वैभव छोड कर जानेवाले है, उनकी ममता निश्चित दुर्गति में ले जाने वाली है, सिद्धचक्र के प्रभाव से यह बात श्रीपाल की समझ में आ गई है । इससे ही तो ऐसी स्थिति में भी मन अरिहंत-सिद्धचक्र में लगा है । यहाँ श्रीपाल कहते है कि जो रहनेवाला नहीं है, उसे भले ही खुद के पास रखे, पर उसमें मन नहीं रखना यह भी एक साधना-योग है । गृहस्थ अवस्था में अलिप्त रहने की कला श्रीपाल हमें सीखा रहे हैं । दुश्मन से भी मैत्री भाव भुगुकच्छ (भरुच) में श्रीपाल ने धवल के जहाज दैवी पाश से छुडवाए फिर श्रीपाल धवल के साथ ही जहाज में देशाटन के लिए जाते है। श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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