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________________ मयणा के सिर पर जब विपत्ति के बादल घिर आए, तब मयणा स्वस्थ कैसे रह सकी ? उनके जीवन में ३ मंत्र अस्थिमज्जावत् बन चुके थेभूतकाल को याद नही करना, भविष्य के सपने नहीं देखना, बस वर्तमान सम्हाल लो । सबको अपनाने जैसी यह सीख है। आज के लिए जैन साधु के लिए वर्तमान जोग का व्यवहारिक उपयोग बताया है । इस विषय का सुंदर विश्लेषण प्रगट किया है। मयणा, उंबर राणा के पास आई तब प्रयोगिक वर्तन द्वारा उंबर ने संदेश दिया कि योग्यता से अधिक की अपेक्षा नहीं करना और मिल जाए तो स्वीकारना भी नहीं। • दूसरे का नुकसान दूर करने के लिए खुद नुकसान में उतर जाना मंद मिथ्यात्व की निशानी है। • अपने नुकसान को दूर करने के लिए दूसरों के लाभ में अवरोध खड़ा करना क्षुद्रता की निशानी है। भवाभिनन्दी के आठ दोषो का वर्णन और धवल शेठ का वृत्तान्त अच्छी तरह समझाया है । ऐसे कई संदेश और संकेत इस अनुप्रेक्षा के प्रवाह में समझने को मिलते है। इनसे यह खयाल आता है कि श्रीपाल-मयणा की कथा मात्र कथा नहीं है, परन्तु जीवन में अपनाने जैसे अनेक संदेशो का योग है। सुविनेय आत्मीय श्री नयचंद्रसागरजी के माध्यम से ऐसे अनेक कथानक प्रकाश में आए यही अंतर की अभिलाषा और आकांक्षा । -हेमचन्द्रसागर
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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