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________________ GO प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग पर दक्षिण प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि जीव पूर्व, पश्चिम, उत्तर ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा-छहों दिशाओं से आहार लेता है। वहां केवल. (संह से ग्रहण किया जाने वाला भोजन आदि) का प्रसंग ही नहीं । रोम-आहार (रूओं से ग्रहण किए जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्त्व) भी अला मात्रा में होता है। वहां आहार का अर्थ है-प्राण-तत्त्व का आहार। जीव जीवित रहने के लिए निरन्तर बाहर से आहरण करता है, वह निरन्तर प्राण-ऊर्जा लेता है। यह आहरण कभी नहीं रुकता। ऊर्जा या प्राण के आहरण का सशक्त माध्यम है श्वास । वह निरन्तर चलता है. तो आहरण भी निरन्तर चलता है। श्वास का सम्बन्ध है प्राण से. प्राण का सम्बन्ध है सूक्ष्म प्राण से और सूक्ष्म प्राण का संबंध है सूक्ष्म शरीर से-कार्मण शरीर से। श्वास और प्राण श्वास भीतर जाता है, उसके साथ प्राणवायु भीतर जाता है। प्राण-तत्त्व भी भीतर जाता है और प्राण-तत्त्व का ऊर्जा के रूप में परिणमन होता है। हमारे जीवन का समूचा क्रम-हमारी सारी प्रवृत्तियां प्राण-शक्ति या प्राण-ऊर्जा के द्वारा संचालित होती हैं। यदि प्राण की ऊर्जा नहीं है, तो चेतना टिक नहीं सकेगी। बोलना-चालना, देखना, इन्द्रियों, मन और बुद्धि का क्रियाशील होना-ये सब प्राण-ऊर्जा के कार्य हैं। इनकी सक्रियता की पृष्ठभूमि में प्राण का प्रवाह कार्य करता है। शरीर, मन और इन्द्रियां अचेतन है; प्राण-ऊर्जा का योग पाकर वे सभी सचेतन हो जाते हैं। हम जितना गहरा श्वास लेते हैं, उतनी ही अधिक प्राण-शक्ति प्राप्त होती है। जब हम श्वास-प्रेक्षा द्वारा श्वास-दर्शन करते हैं, तब प्राण-शक्ति और बढ़ जाती है। जो यौगिक प्रदर्शन आज देखने में आते हैं, वे सारे श्वास के स्तर पर घटित होने वाले प्राण-शक्ति के प्रदर्शन हैं। इसके आधार पर मोटर या ट्रक को छाती पर से निकाला जा सकता है। आत्मा में अनन्त शक्ति है, अनन्त वीर्य है। श्वास उस अनन्त शक्ति का एक अंश है। इसलिए श्वास के प्रयोग से चमत्कार किए जा सकते हैं। प्राण, प्राणवायु और प्राणायाम प्राण-शक्ति को ज्ञान-केन्द्र में ले जाना-यही हमारी प्राण की साधना का अर्थ होता है। लुहार धौंकनी धौंकता है! उससे हवा निकलती है. अग्नि प्रज्वलित होती है। एक तो धौंकनी से हवा निकलती है और एक Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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