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________________ कायोत्सर्ग ३७ दिल का दौरा या रक्ताघात (मस्तिष्क की रक्त-वाहिनी का फट जाना)। यदि आमाशय आदि पाचन-अवयवों को मिलने वाली रक्त की मात्रा लगातार लंबे समय तक क्षीण रहे, तो पाचन-क्रिया में गड़बड़ी हो सकती है। यदि श्वास की गति लम्बे समय तक लगातार तेज बनी रहे, तो उसका परिणाम दमा आदि श्वास की बीमारियों के रूप में हो सकता है। मांसपेशियां के लम्बे समय तक लगातार तनाव से सिर, पीठ, गर्दन और कंधे में दर्द और पीड़ा पैदा हो सकती है। इन गड़बड़ियों के अलावा, निरन्तर तनाव से मानसिक आतंक की भावना पैदा हो सकती है, जो अकारण भय के रूप में होगी। यह न केवल भयावह होगी, अपितु मनुष्य को बिलकुल हताश बनाने वाली सिद्ध हो सकती है। इसका कारण यह है कि लगातार दबाव की स्थिति रहने पर ग्रन्थि-तन्त्र पहले गड़बड़ा जाता है और बाद में समूचा कार्य करना ही बन्द कर देता है। एड्रीनालीन का स्राव बन्द हो जाए, तो हृदय की गति मन्द हो जाएगी, रक्तवाहिनियां शिथिल हो जाएंगी, तथा मस्तिष्क को पहुंचने वाला रक्त बन्द हो जाएगा, जिससे बेहोशी आ सकती है। इस बात को प्रमाणित करने के लिए अब पर्याप्त प्रमाण प्राप्त हो गए हैं कि अनेक प्रकार के रोगों को पैदा करने में तनाव काफी बड़ा निमित्त बनता है। यदि हम तनाव के दुष्परिणामों से बचना चाहते हैं, तो हमें ऐसा उपाय ढूंढना होगा, जिससे परानुकम्पी संस्थान अपना कर्त्तव्य क्षमतापूर्वक निभा सके अर्थात् बिगड़े हुए संतुलन बनाकर सामंजस्य को पुनः प्रस्थापित कर सके। तनाव के कारण ऊपर की चर्चा से ऐसा निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं होगा कि तनाव एकान्ततः हानिकारक ही है। कुछ होने के लिए या उपलब्धि के लिए कुछ मात्रा में तनाव आवश्यक भी है। जो हानि होती है, कार्य में बाधा आती है और थकावट या बीमारियां पैदा होती हैं, वह तनाव की निरन्तरता के कारण तथा उनकी अत्यधिक मात्रा के कारण है। दीर्घकालीन तनाव या उसकी हानिकारक अतिमात्रा की उत्पत्ति के कारणों में एक कारण है-व्यक्ति की जीवन-शैली में अचानक घटित होने वाला परिवर्तन। डॉ. होम्स (Holmes) और डॉ. आर. राहे (Rahe) ने जीवन-शैली के परिवर्तनों का अंकीकरण किया है (जैसे-दम्पति में से एक की मृत्यु)। उनके द्वारा बनाई गई सूची में दिए गए कुछ एक परिवर्तन एवं उनके अंक इस प्रकार हैं Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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