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________________ ३६ प्रेक्षाध्यान: सिद्धान्त और प्रयोग अनुकम्पनी और परानुकम्पी संस्थान संकट की स्थिति समाप्त होने पर तनी हुई मांसपेशियों को शिथिल, सामान्य प्रवृत्तियों को पुनः चालू तथा शांतिपूर्ण स्थिति में पुनः स्थापित करने आदि का दायित्व स्वतः-चालित नाड़ी तंत्र के दूसरे विभाग- परानुकम्पी संस्थान पर है। यद्यपि अनुकंपी और परानुकंपी संस्थानों का कार्य एक-दूसरे से विपरीत जैसा दिखाई देता है, फिर भी वस्तुतः ये एक-दूसरे के साथ गहरा तालमेल बिठाकर कार्य करते हैं । परानुकंपी संस्थान का उद्देश्य है - अनुकंपी संस्थान के कार्य को संतुलित करना । तदनुसार संकट की स्थिति समाप्त होने पर परानुकंपी संस्थान का सक्रिय होना स्वाभाविक है। उसकी सक्रियता अनुकंपी संस्थान से निष्पादित उत्तेजना को समाप्त कर, मांसपेशियों की रासायनिक स्थिति को पुनः सामान्य बनाकर, उन्हें शिथिल करती है। जहां अनुकंपी संस्थान आक्रमणशील और उत्तेजनावर्धक है, वहां परानुकंपी संस्थान मरम्मत करने वाला और शांतिवर्धक है। जब दोनों संस्थानों का कार्य सामान्य स्थिति में होता है अर्थात् दोनों में संतुलन बना रहता है, तब शरीर में सक्रियता और विश्राम/ शांति का आवर्तन लयबद्ध गति से ठीक उसी प्रकार चलता है जैसा झूमा-झूमी में होता है। किन्तु जब संतुलन बिगड़ता है, तब खतरनाक तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। चूंकि वर्तमान युगीन जीवन शैली व्यक्ति को निरन्तर उत्तेजित और सक्रिय बनाए रखती है, मरम्मत करने वाले उपकरण अर्थात् परानुकंपी संस्थान को अपना कार्य करने का मौका ही नहीं मिलता। फलतः शरीर की मांसपेशियां और स्नायु अपनी सहज, शिथिल / शांत अवस्था क्वचित् ही प्राप्त कर सकते हैं। तनाव से गड़बड़ी मनुष्य सहित सभी प्राणियों में यह आन्तरिक तंत्र विद्यमान होता है और इसकी प्रतिक्रिया, जो प्राणी को संकट स्थिति का मुकाबला करने या उससे भागने के लिए तैयार करती है, अनैच्छिक रूप से ( स्वतः) घटित होती है। जब संकट-स्थितियां बार-बार आती हैं, तब 'दबाव तंत्र' बार-बार सक्रिय होता है। यदि ऊपर वर्णित शारीरिक स्थिति लम्बे समय तक बनी रहे या उसका बार-बार पुनरावर्तन होता रहे, तो गम्भीर गड़बड़ी पैदा हो सकती है। इस प्रकार यदि रक्तचाप लगातार ऊंचा बना रहे और रक्तवाहिनियों की संकुचित स्थिति लगातार बनी रहे, तो उसका परिणाम हो सकता है। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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