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________________ पक्षायाम सिदास और प्रयोग शरीर प्रेक्षा साधना की दृष्टि से शरीर का बहुत महत्व है। यह आत्मा का केन्द्र है। इसी के माध्यम से चैतन्य अभिव्यक्त होता है। पैतन्य पर आए हैं। आवरण को दूर करने के लिए इसे सशक्त माध्यम बनाया जा सकता है। शरीर को समग्र दृष्टि से देखने की साधना पद्धति बहुत महत्वपूर्ण है “साधक चक्षु को संयत कर शरीर की प्रेक्षा करे। उसकी प्रेक्षा करने वाला उसके तीन भागों-ऊर्य, मध्य और अधः को जान लेता है।" “जो साधक वर्तमान में शरीर में घटित होने वाली सुख-दुख की वेदना को (द्रष्टा भाव से ) देखता है, वर्तमान क्षण का अन्वेषण करता है, वह अप्रमत्त हो जाता है।" शरीर के प्रत्येक अवयव पर क्रमशः चित्त को एकाग्र कर वहां होने वाले प्राणधारा के प्रकंपनों को तटस्थ भाव से देखने का अभ्यास शरीर-प्रेक्षा शरीर-प्रेक्षा की यह प्रक्रिया अन्तर्मुख होने की प्रक्रिया है। सामान्यतः बाहर की ओर प्रवाहित होने वाली चैतन्य की धारा को अन्तर की ओर प्रवाहित करने का प्रथम साधन स्थूल शरीर है। शरीर-प्रेक्षा में पहले शरीर के बाहरी भाग को देखते हैं। शरीर के भीतर मन को ले जाकर भीतरी भाग को देखते हैं। शरीर के स्थूल और सूक्ष्म स्पन्दनों को देखते हैं। शरीर के भीतर जो कुछ है, उसे देखने का प्रयत्न करते हैं। हमारी कोष-स्तरीय चेतना जो हर कोष के पास है, उसे हम प्रेक्षा के द्वारा जागृत करते हैं। चेतना के जो कोष सोए हुए हैं कुण्ठित हैं, उन्हें जागृत करते हैं। शरीर का प्रत्येक कण चित्त के निर्देश स्वीकार करने के लिए तत्पर है कि वह जाग जाए और मन के साथ उसका संबंध-सूत्र जुड़ जाए। किन्तु जब जगाने का प्रयत्न नहीं होता तब वे मूर्छा में रह जाते हैं और ऐसी स्थिति में चित्त का निर्देश उन तक पहुंच ही नहीं पाता। वे निष्क्रिय ही बने रह जाते हैं। स्थूल शरीर के भीतर तैजस और कार्मण-ये दो सूक्ष्म शरीर हैं । उनके भीतर आत्मा है। स्थूल शरीर की क्रियाओं और संवेदनों को देखने का अभ्यास करने वाला क्रमशः तैजस और कार्मण शरीर को देखने लग जाता है। शरीर-प्रेक्षा का दृढ़ अभ्यास और मन के सुशिक्षित होने पर शरीर में प्रवाहित होने वाली चैतन्य की धारा का साक्षात्कार होने लग जाता है। जैसे-जैसे साधक स्थूल से सूक्ष्म दर्शन की ओर आगे बढ़ता है, वैसे-वस उसका अप्रमाद बढ़ता जाता है। Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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