SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ लेश्या-ध्यान जगत् काल और विद्युत् का प्रवाह मात्र है। सब कुछ विद्युन्मय है। ऐसी स्थिति में अच्छा सोचना भी विद्युत् की तरग है और बुरा सोचना भी विद्युत् की तरंग है। सोचना, चिंतन करना, प्रवृत्ति करना, सब कुछ विद्युत् की तरंग है। यदि हम निस्तरंग की ओर बढ़ना चाहते हैं, तरंगातीत स्थिति में जाना चाहते हैं तो उसकी यही प्रक्रिया होगी कि सबसे पहले बुरी तरंग को समाप्त कर अच्छी तरंग का निर्माण करें। अच्छी तरंग का निर्माण किए बिना बुरी तरंग को समाप्त नहीं किया जा सकता। जिस बुरे चिंतन से व्यक्ति तरंगातीत स्थिति से दूर चला गया था, वह अच्छे चिंतन से उस दिशा में कदम बढ़ा सकता है। यद्यपि अच्छे चिन्तन से व्यक्ति तरंगातीत अवस्था में नहीं पहुंच सकता, किन्तु जहां बुरा चिंतन तरंगातीत दिशा से हमें विमुख कर देता है, वहां अच्छा चिंतन उस दिशा में गति कराता है। बुरे चिन्तन से अच्छे में आने का सबसे सरल उपाय है-लेश्या-ध्यान । इस ध्यान का अभ्यास किए बिना चिंतन को नहीं मोड़ा जा सकता। सामाजिक संबंधों के कारण व्यक्ति में शत्रुता के भाव आते रहते हैं। दूसरे का अनिष्ट करने की भावना उसमें पनपती है। अप्रिय व्यक्ति के सामने आते ही आंखें तमतमा जाती हैं। विरोधी व्यक्ति की स्मृति होते ही सारी चिंतन-धारा प्रकम्पित हो जाती है। इन प्रतिक्रियाओं को तब तक नहीं रोका जा सकता, जब तक शुद्ध लेश्याओं का ध्यान नहीं किया जाता। प्रशस्त लाल, प्रशस्त पीत और प्रशस्त श्वेत वर्णों का ध्यान कर हम आंतरिक प्रक्रिया को बदल सकते हैं और मन की आंतरिक प्रक्रिया के द्वारा फिर उन वर्गों में परिवर्तन शुरू हो जाता है। तब हम बाहर से भीतर को प्रभावित करते हैं और भीतर से बाहर को प्रभावित करते हैं। अन्तर्वृत्तियों के शोधन के लिए तैजस और पद्म लेश्या का ध्यान किया जाए। बुरे विचार न उठे, बुरे विचार हमें आक्रांत न करें, हमारे मस्तिष्क को प्रभावित न करें, इसलिए हमें शुक्ल लेश्या का ध्यान करना होगा। हम एक ऐसे कवच का निर्माण करें जिसको भेद कर बुरे विचार न आ पाएं। वे बाहर ही रह जायें। हमारे मस्तिष्क में न आयें। यदि शुक्ल लेश्या के द्वारा हम एक शक्तिशाली कवच बना लेते हैं तो बाहर के खतरे से बच जाते हैं। यदि हम तैजस और पदम लेश्या का कवच बना लेते हैं. तो भीतर से उठने वाले बुरे विचारों के आक्रमण से बच जाते हैं। इसके बाद अच्छे विचारों की तरंगें पैदा होने लग जाती हैं और ये तरंगें बहुत सहयोगी बनती हैं। ये हमारी अध्यात्म यात्रा में आगे बढ़ने में सहयोग Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy