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________________ प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयार हैं. उन्हें तरंगावस्था में ही तैजस शरीर के स्तर पर प्रशस्त लेप स्पन्दनों को उत्या कर मन्द कर दिया जाता है। यह लेण्याद्वारा किया जा सकता है। लेश्या-ध्यान में प्रशस्त रंगों के ध्यान प्रशस्त लेश्या के स्पन्दन पैदा करने से अप्रशस्त लेश्या के स्पन्दन की भीतर से आ रहे हैं, उनकी तीव्रता मन्द हो जाती है। कषाय या अतिसूक्ष्म (कार्मण) शरीर में केवल स्पंदन है, कोरी तरंग हैं। वहा भाव नहीं है। वहां चेतना के स्पंदन भी हैं और कषाय के स्पंदन भी हैं। दोनों के स्पन्दन ही स्पंदन हैं, तरंगें ही तरंगें हैं। उदाहरणार्थ, क्रोध कषाय का एक रूप है। अति सूक्ष्म शरीर में क्रोध की केवल तरंगें होती हैं। चैतन्य की तरंगों के साथ जब क्रोध की तरंगें मिलती हैं, तो क्रोध के अध्यवसाय बनते हैं। वहां तक कोरी तरंगें हैं, भाव नहीं। बाद में वे तरंगें सघन होकर भाव का रूप लेती हैं, वे लेश्या बन जाती हैं। लेश्या में पहुंचकर भाव बनता है और तरंगें ठोस रूप ले लेती हैं। शक्ति या ऊर्जा पदार्थ में बदल जाती है। तरंग का सघन रूप है भाव और भाव का सघन रूप है क्रिया। जब भाव सघन होकर क्रिया बन जाती है तब वह स्थूल शरीर में प्रगट होती है। लेश्या-ध्यान के द्वारा कषाय के मंदीकरण की प्रक्रिया को फिर क्रोध के उदाहरण से समझें। क्रोध स्थूल शरीर में प्रगट होने से पहले तक तरंगावस्था में होता है ; तब ही उसकी शक्ति को क्षीण करना होगा। रंगों के ध्यान के द्वारा-शुभ लेश्या के द्वारा ऐसी तरंगों को उत्पन्न करना होगा जो क्रोध को तरंगावस्था में ही समाप्त कर सके या उसकी शक्ति, प्रभाव और सक्रियता को क्षीण कर सके। क्रोध की तरंगें भी ऊर्जा के रूप में हैं और उनको समाप्त करने वाली तरंगें भी ऊर्जा के रूप में हैं। निस्तरंग की दिशा में प्रस्थान । तीन स्थितियां हैं-१. बुरे विचार २. अच्छे विचार ३. निर्विचार । “बुरे विचार* भी एक तरंग है और “अच्छे विचार" भी तरंग है। दोनों तरंगें हैं। दोनों में तरंग की दृष्टि से कोई अंतर नहीं है। किन्तु एक तरंग और दूसरा तरंग में बहुत बड़ा अन्तर होता है। सामान्य आदमी यह मानता है कि इस संसार में रंग हैरूप है, ध्वनियां हैं. ताप है. सब-कुछ है। किन्तु वैज्ञानिक इस भाषा में नहीं सोचेगा। वैज्ञानिक के लिए यह दुनिया - रंगमय है, न रूपमय है, न ध्वनिमय है, न तापमय है। उसके लिए यह Scanned by CamScanner
SR No.034030
Book TitlePreksha Dhyan Siddhant Aur Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size80 MB
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