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________________ Samādhitantram भी उपाय सिखाया है। समाधितंत्र एक महान आध्यात्मिक ग्रंथ है। इसमें आत्मशुद्धि पर बहुत बल दिया गया है। बार-बार कहा गया है कि आत्मा ही आत्मा का गुरु है, दूसरों को समझाने के चक्कर में मत पड़ो, दूसरे को समझाने और दूसरे से समझने का भाव उन्मत्तचेष्टा है - पागलपन है। सदा एक आत्मा को ही जानना चाहिए और उसी में लीन होना चाहिए। राग-द्वेषरूप मानसिक विकल्पों का नाम आधि है, ज्वरादि शारीरिक कष्टों का नाम व्याधि है और बाहरी झंझटों का नाम उपाधि है। इन समस्त आधि, व्याधि, उपाधि से रहित दशा का नाम समाधि है। समाधितंत्र में इसी समाधि का श्रेष्ठ साधन समझाया गया है। __ आचार्य कुन्दकुन्द भगवन् ने भी अपने ग्रंथों में यह उपदेश दिया है कि शुद्धात्मा ही स्वयं ज्ञान तथा सुखरूप परिणमन करता है। प्रवचनसार (गाथा 68) में उन्होंने निर्देश दिया है - 'जैसे आकाश में सूर्य आप ही अन्य कारणों के बिना तेजरूप है, उष्ण है और देवगति नामकर्म के उदय से देव पदवी को धारण करने वाला है, उसी प्रकार इस जगत में शुद्धात्मा भी ज्ञानस्वरूप है, सुखस्वरूप है और देव अर्थात् पूज्य है।' इससे यह बात सिद्ध है कि आत्मा स्वभाव से ही ज्ञान, सुख और पूज्य - इन तीनों गुणों के सहित है। आत्मा स्वयमेव स्व-पर को प्रकाशित करने में समर्थ सहज-संवेदन के साथ तादात्मय होने से ज्ञान है, आत्मतृप्ति से उत्पन्न अनाकुल स्थिरता से सुख है और आत्मतत्त्व में सिद्धस्वरूप होने से स्तुति योग्य देव है। इन्द्रियों का जो ज्ञान व सुख है वह मूर्तिक है, वह आत्मा का ज्ञान व सुख नहीं होता। आत्मा स्वयं ही ज्ञान-सुख स्वभावरूप है। आत्मा का ज्ञान सर्वगत अर्थात् सर्वव्यापक है, अमूर्तिक है, हानिवृद्धि से रहित सुखरूप है। इसलिए जो जीव समस्त परिग्रह से रहित होता हुआ आत्मा के द्वारा आत्मा का ही ध्यान करता है वह शीघ्र ही कर्मों से रहित आत्मा को ही प्राप्त करता है। ऐसा शुद्धात्मा ही पूज्य है और भव्य जीवों के लिए साध्य है। धर्मानुरागी श्री विजय कुमार जी जैन ने समाधितंत्र की हिन्दी व अंग्रेजी में सुंदर व्याख्या लिखकर और उसे स्तरीय ढंग से प्रकाशित कर जिनवाणी की महान सेवा की है। उन्हें मेरा बहुत-बहुत मंगल आशीर्वाद है। शुभ। वीर अगस्त 2017 कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली आचार्य विद्यानन्द मुनि (VI)
SR No.034028
Book TitleSamadhi Tantram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay K Jain
PublisherVikalp Printers
Publication Year2017
Total Pages243
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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