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________________ मंगल आशीर्वाद - परम पूज्य सिद्धान्तचक्रवर्ती श्वेतपिच्छाचार्य १०८ श्री विद्यानन्द जी मुनिराज अपाकुर्वन्ति यद्वाचः कायवाञ्चित्तसम्भवम् । कलङ्कमङ्गिनां सोऽयं देवनन्दी नमस्यते ॥ (१-१५) - आचार्य शुभचन्द्र, ज्ञानार्णवः अर्थ - जिनके वचन जीवों के मन, वचन, काय - तीनों से सम्बन्धित सर्व दोषों को दूर करते हैं, उन आचार्य देवनन्दि (पूज्यपादस्वामी) को हम नमस्कार करते हैं। जैन धर्म की आचार्य-परम्परा में आचार्य देवनन्दि पूज्यपाद का स्थान अद्भुत है। उन्होंने हमारे सर्वतोमुखी विकास हेतु मन, वचन और काय - तीनों को शुद्ध करने की कला सिखाई है। जैसे इष्टोपदेश एवं समाधितंत्र के द्वारा मनशुद्धि की कला सिखाई है, जैनेन्द्र-व्याकरण से वचनशुद्धि की कला सिखाई है और आरोग्यशास्त्र से कायशुद्धि का (v)
SR No.034028
Book TitleSamadhi Tantram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay K Jain
PublisherVikalp Printers
Publication Year2017
Total Pages243
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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