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________________ षष्ठ अध्याय 85 अत्याचार, भय, दमन और मानव के साथ दुर्व्यवहार है, वहाँ संगठित अहिंसा से प्रतिरोध किया जा सकता है। गाँधीजी ने तो इसके अनेक प्रयोग किए। दक्षिण अफ्रीका, चम्पारन, खेड़ा आदि स्थानों पर संगठित अहिंसा की सहायता से उन्हें विजय भी प्राप्त हुई। संगठित अहिंसा के सन्दर्भ में उन्होंने लिखा है - "जो बात मैं करना चाहता हूँ और करके मरना चाहता हूँ, वह यह है कि अहिंसा को संगठित करूँ । यदि यह सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं है तो झूठ है। मैं कहता हूँ कि जीवन की जितनी विभूतियाँ है, सबमें अहिंसा का उपयोग है अहिंसा यदि व्यक्तिगत गुण है तो मेरे लिए त्याज्य है । मेरी अहिंसा की कल्पना व्यापक है । वह करोड़ों की है । मैं तो उसका सेवक हूँ। जो चीज करोड़ों की नहीं हो सकती, वह मेरे लिए त्याज्य है और मेरे साथियों के लिए भी त्याज्य ही होनी चाहिए। हम तो यह सिद्ध करने के लिए पैदा हुए हैं कि सत्य और अहिंसा केवल व्यक्तिगत आचार के नियम नहीं हैं। मेरा यह विश्वास है कि अहिंसा सदैव के लिए है। यह आत्मा का गुण है, इसलिए व्यापक है। अहिंसा सबके लिए है और सब जगह के लिए है, सभी समय के लिए है । " गाँधीजी अहिंसा को व्यक्ति विशेष की चीज नहीं बनाना चाहते थे और न ही पूजा की वस्तु बनाना चाहते थे। वे अहिंसा को समाज, राष्ट्र और समूचे विश्व की सार्वकालिक और सार्वभौमिक चीज बनाना चाहते थे। आज भारत का यह सौभाग्य है कि अहिंसा का सन्देश देने वाले महात्मा गाँधी का जन्मदिन अब 'अहिंसा के अन्तर्राष्ट्रीय दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। सन् 2007 में 191 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में अहिंसा की वैश्विक प्रासंगिकता पर भारत द्वारा लाये गये और 120 से अधिक देशों द्वारा सहप्रयोजित प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार अब दो अक्टूबर का दिन प्रतिवर्ष 'अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मानाया जाता है। सन् 2011 में भारत में भ्रष्टाचार और अन्याय के विरुद्ध एक विशाल अहिंसक आन्दोलन के प्रवर्तक अन्ना जी ने
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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