SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 84 अहिंसा दर्शन गाँधीजी की दृष्टि में अहिंसा, कायरता नहीं, क्योंकि इसके लिए पुरुषार्थ आवश्यक है। इसका पालन साहसी ही कर सकता है। अहिंसक वह है, जो कायर नहीं है, जो मरने से डरता नहीं है। अहिंसा का अर्थ अत्याचारी के सामने झुकना नहीं वरन् दृढ़ता से उसका सामना करना है, उसकी मिथ्या इच्छा के विरुद्ध अपनी प्राणशक्ति लगा देना है। अहिंसक सदा सहिष्णु होता है, इसके विपरीत कायर सदैव कष्ट पहुँचाने में विश्वास रखता है। अहिंसक व्यवहार कभी पतनकारी नहीं होता, कायरता सदैव पतनशील होती है। वे कहते हैं - हिंसक व्यक्ति को अहिंसक बनाया जा सकता है परन्तु कायर व्यक्ति को नहीं। उन्हीं के शब्दों में "मैंने तो पुकार-पुकार कर कहा है कि अहिंसा, वीर का लक्षण है; कायरता कभी धर्म नहीं हो सकती। आत्मबल के सामने तलवार का बल तृणवत् है, अहिंसा आत्मा का बल है।" गाँधीजी अहिंसा को केवल एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों की सम्पत्ति नहीं मानते थे। उनका मानना है कि अहिंसा हर व्यक्ति के मन में वैसे ही विद्यमान है, जैसे धरती के अन्दर दबा हुआ बीज। बीज को जब जल आदि उचित संसाधन प्राप्त हो जाते हैं तो वह अङ्कर का रूप ले लेता है और वही लघु अङ्कर एक दिन विशाल वृक्ष बन जाता है। ठीक उसी प्रकार प्रत्येक मन में अहिंसा है, मात्र उसे विकसित करने की आवश्यकता है। गाँधीजी का विचार था कि अहिंसा, मानव में निर्भीकता भर देती है। निर्भीक व्यक्ति, संसार में सब कुछ करने में समर्थ रहता है क्योंकि उसमें अत्यधिक आत्मबल होता है। आत्मिकबल ही तो वास्तविक शक्ति है। शरीर का बल, बिना आत्मिकबल के व्यर्थ होता है। गाँधीजी की यही कामना थी कि हमारे देशवासियों में आत्मिकबल की जो कमी है, वह दूर हो और वे यह मानते थे कि वह कमी अहिंसा द्वारा ही दूर हो सकती है। अहिंसा में व्यक्ति के अन्दर अपार क्षमता भरने की शक्ति होती है। गाँधीजी कहते थे कि जिस प्रकार हिंसा संगठित हो सकती है, वैसे ही अहिंसा भी संगठित हो सकती है। जहाँ कहीं भी उत्पीड़न अन्याय,
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy