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________________ षष्ठ अध्याय साम्प्रदायिक सद्भावना गाँधी जी इस तथ्य से परिचित थे कि वर्तमान का भारत विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय, जातियों का संगम स्थल है। इसीलिए उन्होंने विचार किया कि जब तक इनमें परस्पर सहानुभूति और सहिष्णुता का भाव नहीं रहेगा, देश उन्नति नहीं कर सकता। ब्रिटिश सरकार हिन्दु-मुसलमानों को आपस में लड़ाना चाहती थी, गाँधी जी उनकी इस चाल को समझ चुके थे इसीलिये उन्होंने साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए सबसे अधिक कार्य किया। वे भारतवर्ष को पक्षी तथा हिन्दु-मुसलमान को उसके दो पंख कहते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बँटवारे को लेकर भारत में जो साम्प्रदायिक संघर्ष हुआ गाँधी जी उसे लेकर साम्प्रदायिक सौहार्द कायम होने तक उपवास पर बैठ गये थे। उनका स्पष्ट मानना था कि जब भारत में सभी धर्म एक दूसरे का आदर नहीं करेंगे तब तक भारत पूर्ण राष्ट्र नहीं बन सकता। गाँधी जी किसी सम्पन्न घराने के व्यक्ति नहीं थे और न ही आजकल के मापदण्डों के अनुसार दुनियावी दृष्टि से उनका व्यक्तित्त्व बहुत आकर्षक ही था, न वे शास्त्रीय ढंग के पण्डित थे और न ही बहुत अच्छे वक्ता। इन सांसारिक विशेषताओं के न होते हुए भी सही अर्थों में मनुष्य थे। व्यक्ति की सीमाओं को पार करते हुये उन्होंने 'मनुष्यत्व' को प्राप्त कर लिया था। उनका व्यक्तित्व सर्वव्यापी तथा समदृष्टि सम्पन्न था। वे घनश्यामदास बिड़ला, लुईमाउन्टबेटेन अथवा वितानिया के बादशाह के साथ उसी भाव भंगिमा के साथ बातें करते थे जिस भाव के साथ एक गरीब हरिजन से। शायद यह समझौता नहीं था, और अहंकार भी नहीं था, यह चित्त की शुद्धता और निर्मलता थी जिसके वशीभूत होकर लाखों करोड़ों लोग उनके साथ हो लिये। उनका आभामंडल इस बँटी हुयी दुनिया के हर कोने में जगमगा रहा था। यह कार्य उन्होंने मात्र अपने लेखन के बल पर नहीं किया, बल्कि वे जनसामान्य तक प्रत्यक्षसम्पर्क, सेवा, कर्म, उदाहरण-प्रयोग और कुछ दुनिया द्वारा छोड़ दिये गये सिद्धान्तों- जैसे अहिंसा, सत्य और साध्य पर साधनों की श्रेष्ठता के प्रति वफादारी के माध्यम से पहुँचे थे। हमें यह कहना पड़ेगा कि
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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