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________________ अहिंसा दर्शन पूज्य-पुरुषों, विशिष्ट अतिथियों के स्वागत-सत्कार में हिंसा करना चाहिए। 3. माँ माँसाहार से एक जीव मरता है, शाकाहार से अनेक जीव मरते हैं; इसलिए माँसाहार उचित है। 4. किसी एक हिंसक प्राणी को मारेंगे तो अनेक अहिंसक तथा अन्य जीवों की रक्षा होगी; अत: उसकी हत्या उचित है। 5. कोई जीव, रोग या परिस्थिति से दुःखी है, उसे मारने से उसका दुःख दूर हो जाएगा, वह मुक्त हो जाएगा; अत: उसकी हिंसा उचित है। 6. सुखी जीव को मारने से उसे दूसरे जन्म में भी सुख मिलेगा; अत: उसे मारना उचित है। 7. समाधि में बैठे गुरु का यदि सिर काट दें तो वे मोक्ष चले जाएँगे। दूसरों को भोजन कराने के लिए अपने शरीर को काटकर भी माँस खिलाना चाहिए। आचार्य अमृतचन्द्र के समय हिंसा विषयक ये धारणाएँ प्रचलित थीं, उन्होंने अपने ग्रन्थ में इनका अलग-अलग उल्लेख करते हुए उनका समाधान किया कि ये सभी तर्क गलत हैं। जो हिंसा है, वह हिंसा ही है, वह चाहे धर्म या धर्मात्मा, किसी के भी उद्देश्य से क्यों न की जाए, उसका धर्म या मोक्ष से कोई लेना-देना नहीं है। वर्तमान में भी स्वार्थी और जिह्वा के लोलुपी मनुष्य, हिंसा के पक्ष में अनेक कुतर्क देते हैं। जैसे, यदि हम जानवरों को मारकर नहीं खाएंगे तो इनकी संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि संसार में रहना मुश्किल हो जाएगा। पशुधन जब काम का न रह जाए तो उसे बूचड़खाने में भेजकर उसके चमड़े और माँस का उपयोग करना ही उचित है इत्यादि, किन्तु यह सारा चिन्तन अनिष्ट और हिंसक मनोवृत्ति का सूचक और उसका प्रबल पोषक है।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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