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________________ 170 अहिंसा दर्शन विचार नहीं करते हैं। हमें इन विषयों पर भी गम्भीरता से विचार करना होगा। विश्वशांति और अहिंसा यूनेस्को के घोषणा पत्र में यह उद्घोषित किया गया है कि "युद्ध मनुष्य के मन से प्रारम्भ होता है, अतः शान्ति का परकोटा भी मनुष्य के मन में ही खड़ा करना होगा।" जिस प्रकार यह एक तथ्य है कि अहिंसा आत्मा का स्वभाव है; ठीक उसी प्रकार यह भी तथ्य है कि हर मनुष्य में हिंसा के संस्कार संचित रहते हैं। अहिंसा का विकास क्रम से होता है। वह अचानक एक साथ जीवन में नहीं उतरती। इसके लिए सबसे पहली आवश्यकता है-'अहिंसा के प्रति आस्था'। ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जो अहिंसा के प्रति अनास्था का स्वर देते रहते हैं। नारायण श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को युद्ध करने को चंद श्लोकों में जो कहा वह पूरी दुनिया को याद हो गया; किन्तु गीता और महाभारत के सम्पूर्ण अध्यायों में उन्होंने अहिंसा धर्म की जो विशद् व्याख्या की वह कुछ ही लोग पढ़ते-सुनते हैं।' अहिंसा परमो धर्मः' -यह महाभारत का वाक्य है। किन्तु इसे महाभारत के सन्देश के रूप में प्रचारित प्रसारित नहीं किया जाता। यह हमारी हिंसा के प्रति आस्था ओर रुचि को दर्शाता है। किसी राष्ट्र पर आक्रमण करना हिंसा है-इसमें साधारणतया सभी सहमत हो जाते हैं किन्तु अपने देश की रक्षा के लिए युद्ध करना हिंसा है-इससे कोई ज्यादा लोग सहमत नहीं दिखायी देते, बहुमत इस पक्ष में ही रहता है कि अपनी, अपने परिवार, समाज, धर्म या राष्ट्र की 1. Since war begins in the mind of men, it is in the mind of men that we have to erect theramparts of peace'-UNESCOCharter) गीता- 16/2-3, इत्यादि महाभारत- 13/116/28
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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