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________________ 168 अहिंसा दर्शन अहिंसा को गढ़ा और उसकी स्थापनायें की। समाज में हर काल और युग में अनेक परिस्थितियाँ बनीं और बिगड़ी, अनेक आक्रमण और धार्मिक रक्तपात भी हुये। इन तमाम कारणों से अहिंसा धर्म के बाहरी मापदण्डों में भी विशाल परिवर्तन आया। कई परिस्थितियों में 'सुख-शांति' की स्थापना के लिए और अहिंसा की रक्षा के लिए हिंसा भी जरूरी समझी गयी। अहिंसा धर्म पर कई आरोप भी लगाये गये। आज भी लगभग हर राष्ट्र परमाणु हथियारों से लैस होकर, दूसरे राष्ट्रों को धमकाकर, खुद बारूद के ढेर पर खड़ा है। सभी के हाथ में हथियार हैं, सभी को खुद की मौत का भय है, इसलिए समान ताकत वालों पर हथियार नहीं चला रहा है, इसीलिए उनकी धारणा है कि शांति है, अहिंसा है। हिंसा और शांति यह नये किस्म की शांति है जो पूर्णतया हिंसा और भय से युक्त है। हिंसा के समर्थकों को ऐसी शांति पसन्द है। इस दौरान जो वार्तायें होती हैं उसे हम 'शांति वार्ता' कहते हैं। किन्तु धर्म और अध्यात्म इसे शांति और अहिंसा नहीं मानता। दोनों और हृदय में रक्तपात के अंगारे हों; मन में विनाश की योजना हो, आँखों में उतरता खून हो, एक हाथ में परमाणु बम का रिमोट कंट्रोल हो और दूसरे हाथ से हलक में उतरती शराब हो और आप कहते हैं यह शांति व्यवस्था है? जी नहीं! यह तो वही जालिम बर्बर-पन का मानवीय इतिहास है जब वह पत्थर के हथियार बनाकर मारे भूख के अपने ही परिजनों को मारने लगता था। सभ्यता-संस्कृति और हिंसा सभ्यता के नाम पर हमने बाहरी चकाचौंध और भौतिक संसाधनों का चाहे कितना भी विकास कर लिया हो किन्तु जब एक जननी मां अपनी गर्भ में पल रहे बेटा/बेटी की भ्रूण हत्या करवाती है, नवजात बेटी को कड़कड़ाती सर्दी में झाड़ियों में फेंक देती है तब सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि हमारे आदिम बर्बरपन के संस्कार अभी गये नहीं हैं, बल्कि हम पशुओं से भी निम्न स्तर पर गिरकर सभ्यता के विकास का
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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