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________________ परिशिष्ट उपलब्ध करवाकर युवकों की ऊर्जा और ध्यान का रूपान्तरण किया जा सकता है। सिर्फ बौद्धिक विकास करने के स्थान पर यदि युवकों को साथ ही साथ निजी लघु उद्योगों, तकनीकी कार्यों तथा स्वरोजगार का प्रशिक्षण भी दिया जाए तो सार्थक परिणाम सामने आयेंगे और विद्रोह आतंक जैसे विचारों के लिए उसके पास वक्त ही न होगा। आतंकवाद आन्तरिक छटपटाहट की अभिव्यक्ति वस्तुत: आतंकवाद, हिंसा और आक्रामकता के अनेक कारण हैं। और कोई एक कारण प्रमुख नहीं है आज भारतीय समाज विशेषतः नगरों और महानगरों में रहने वाला समाज एक गंभीर सांस्कृतिक- सामाजिक और आर्थिक बदलाव से गुजर रहा है। निश्चय ही व्यक्ति अकेला होता जा रहा है। समाज की इकाइयों से दूर और निरपेक्ष अकेला व्यक्ति जो अपने को महानायक की भूमिका में स्थापित करना चाहता है, एक जंग लड़ रहा है अपने परिवेश में उस पर काबू पाने के लिए एक जंग तो अपने से लड़ रहा है और दूसरी जंग अपने सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक अतीत से मुक्त होने के लिए। इस दुहरी जंग की कश्मकश में उसे कुछ नहीं सूझ रहा है कि वह क्या कर रहा है और क्यों कर रहा है? अपनी खोती बनती पहचान के संघर्ष में डूबता - उबरता वह निपट अकेला व्यक्ति नये भ्रम पाल रहा है। 165 हिंसा का उल्लास (या अट्टहास) इसी छटपटाहट की एक अभिव्यक्ति है। भारतीय मानस के लिए यह अटपटा है क्योंकि यहाँ जगत् और स्व के बीच कोई प्रतिद्वन्द्विता या दुराव नहीं है। दोनों ही एक तत्त्व से ओतप्रोत माने जाते रहे हैं। इनमें स्व की समृद्धि, राष्ट्र से ही संभव होती है । यहाँ अनेकान्त दर्शन की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भिन्न धर्मों, भाषाओं, रीति-रिवाजों से बने भारतीय या किसी भी समाज में भिन्नता का सहज स्वीकार आवश्यक है। हम इस सच्चाई को समझें और अमल में लावें। व्यक्ति और समाज एक-दूसरे को गढ़ते बनाते हैं । व्यक्ति की संभावना
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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