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________________ दशम अध्याय 137 धार्मिक मान्यताओं की स्वार्थपरक व्याख्याएँ करके मूक पशुओं की बलि देकर उनकी हत्या करना, धार्मिक कट्टरता का आसरा लेकर उसी के नाम पर असंख्य पशुओं की बलि देना और उनका मांस खाकर स्वयं को पुण्यशाली मानना, बड़े-बड़े होटलों, रेस्टोरेंटों में आधुनिक जीवन पद्धति का मूल अंग मानकर तरह-तरह के मांस व्यंजन को बढ़ावा, टी.वी. पर मांसाहारी व्यंजन बनाने की विधि सिखलाना, क्या हमें सोचने पर विवश नहीं करता है? पशु-पक्षी प्रकृति के अभिन्न अंग हैं। ये यदि इसी प्रकार नष्ट होते रहे तो प्राकृतिक संतुलन तो बिगड़ेगा ही और पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ेगा। हमारी आत्मघातक नीतियाँ और अमानवीय कृत्वों के सबसे बड़े नमूने हैं ये पशु कत्ल कारखाने। प्रतिदिन हजारों गायों, भैसों का डिब्बा बंद मांस निर्यात के लिए तथा चमड़े की वस्तुएँ बनाने के लिए कत्ल करना इन कत्लकारखानों की दिनचर्या है। सरकार की ओर से प्रकाशित पर्यावरण विषयक ग्रन्थों में क्या कभी इस विषय पर चिन्तन किया गया है? यह महत्त्वपूर्ण और गहन विचारणीय विषय है कि हमारे दूध-दही के प्राकृतिक स्रोतों को मांसाहार के नाम पर समाप्त किया गया तो हमारा पर्यावरण कैसे संतुलित रहेगा? यह तो प्रत्यक्ष सिद्ध है कि मांसाहार के बिना जीवन स्वस्थ और सानन्द व्यतीत हो सकता है। मांसाहार मात्र फैशन और जीभ के स्वाद के लिए किया जाता है न कि जीवन-यापन के लिए। चिन्तनीय प्रश्न यह है कि आज जबकि हमारा ऐसा करना पर्यावरण प्रकृति के लिए भी घातक हो रहा है तब इतना आग्रह क्यों? स्वाभाविक आहार शाकाहार शाकाहार मनुष्य का मूलभूत स्वाभाविक आहार है। वह उसके विकास का जीवन्त साक्ष्य है। हम उसे अहिंसा, करुणा, स्वास्थ्य, स्वच्छता मूलक मानवीय आहार निरूपित कर सकते हैं। शाकाहार मात्र आहार ही नहीं है, वह एक ऐसी सुविकसित जीवन-शैली है, जिसकी जड़ें भारतीय समाज और संस्कृति में बहुत गहरी और सघन हैं। हिंसा और क्रूरता को जीवन से क्रमशः अलग करते जाने की गौरव-कथा शाकाहार है।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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