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________________ दशम अध्याय शाकाहार और पर्यावरण आज सम्पूर्ण विश्व के मानचित्र पर उभरने वाले समस्यागत मुद्दों में एक प्रमुख विचारणीय मुद्दा है कि पर्यावरण और प्रकृति पर गहराते संकट का समाधान कैसे हो? वातावरण की शुद्धता को पुन: कैसे प्राप्त किया जाय? निरन्तर बढ़ रही बहुविध हिंसा, वन्य तथा पशुओं की बड़ी तादाद में हो रही हत्या और तामसिक विचारधारा एवं वृत्तियों पर अंकुश कैसे लगाया जाए? विश्व स्तर पर इसका अध्ययन चल रहा है। पर्यावरण की रक्षा हेतु संस्थानों में पर्यावरण विषयक विशेष अध्ययन अनुसंधान हो रहे हैं, किन्तु आश्चर्य है कि पर्यावरण की शुद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला विषय, “आहार की शुद्धता" की ओर ध्यान ही नहीं जाता। बढ़ती तामसिक प्रवृत्तियाँ ही पर्यावरण प्रदूषण में मूल कारण हैं और उसके भी मूल में है तामसिक आहार अर्थात् मांसाहार। मनुष्य का जीवन प्रकृति की छाया से पोषित होते हुए जिस नये परिवेश में आया है उसका रखरखाव एवं प्राकृतिक संतुलन ही सभ्यता और संस्कृति का महान् लक्ष्य होना चाहिए और इस हेतु प्रकृति एक मूलतत्व है जो कि व्यक्ति की जीवनशैली और समाज संरचना से सीधा सम्बन्ध रखती है। छोटे से छोटे और बड़े से बड़े पृथ्वी तल के सभी जीव जन्तु प्रकृति की सुन्दर कृति हैं, वे रहेंगे तो प्राकृतिक संतुलन बना रहेगा और हमारा अस्तित्व रहेगा यदि इसी तरह इनका संहार होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब विनाश की पूरी काली छाया हमारे सामने छा जाएगी। इस दृष्टि से वर्तमान की स्थिति भी कम चिन्तनीय नहीं है। आहार और अराजकता अपराध वृत्ति और अराजकता भी एक जटिल समस्या है जो वातावरण को अशांत करती है। आज मानव मन में फैल रही तामसिक
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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