SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवम अध्याय 131 भी आपरेशन इत्यादि के समय मरीज की मृत्यु हो जाए तो डाक्टर को कोई हत्यारा नहीं मानता क्योंकि उसका अभिप्राय और उद्देश्य हमेशा अहिंसक ही रहता है। इस बात को आधुनिक युग की विडम्बना ही कहा जाएगा कि कुछ स्वार्थी तथा धनलोलुपी डाक्टर अपने कृत्यों से इस पवित्र पेशे को बदनाम करने से भी पीछे नहीं हटते। चिकित्सा के क्षेत्र में निम्नलिखित प्रमुख हिंसाएँ सामने आ रही हैं, जिसने चिकित्सीय विश्वास को जड़ से हिला दिया है - (1) नकली दवाओं का निर्माण तथा खुले बाजार में उनकी बिक्री होना। (2) भ्रूणहत्या और गर्भपात करना। डाक्टरों द्वारा अनावश्यक ऑपरेशन तथा गरीबों के अङ्ग निकालकर उन्हें जरूरतमन्द अमीरों को ऊँचे दामों में बेचना। (4) सिर्फ कमीशन की कमाई के लिए मरीजों की अनावश्यक पैथोलॉजिकल जाँचें करवाकर, उनकी गाढ़ी कमाई तथा स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना। रोगों की आशंका बताकर मरीजों को डराना तथा उनका इलाज के नाम पर अनावश्यक खर्च करवाना। (6) मरीजों को मात्र एक ग्राहक समझना। पैसे कम होने या कोई पहचान नहीं होने पर, उसके ईलाज से इंकार करना। रोग के उपचार का ज्ञान न होने पर भी उसे बड़े चिकित्सक के पास न भेजकर, स्वयं अनावश्यक प्रयोग करते रहना और कमाई का साधन बनाना। (9) कम दामवाली दवाई उपलब्ध होने पर भी जानबूझकर महँगी दवाईयाँ लिखना।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy