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________________ नवम अध्याय सामाजिक जीवन में अहिंसा की उपयोगिता प्रायः अहिंसा को जीवों को साक्षात् न मारने तक सीमित कर दिया जाता है। अनैतिकता, भ्रष्टाचार, चोरी, शोषण, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्क, वासना, आसक्ति और दुराग्रह आदि जीवन में पलते रहें और अहिंसा भी सधती रहे, क्या यह सम्भव है? जीवों को न मारना अहिंसा है किन्तु उसकी इयत्ता यहीं तक नहीं है। जो लोग अहिंसा को सीमित अर्थ में देखते हैं, उन्हें किसी चींटी के मर जाने पर पछतावा हो सकता है, किन्तु दूसरों को ठगने को या उन पर झूठे केस चलाने या उनका शोषण करने में उन्हें कोई पछतावा नहीं होता। अपने क्षुद्र स्वार्थ की पूर्ति के लिए दूसरों का बड़ा से बड़ा अहित करने में उन्हें हिंसा का अनुभव नहीं होता। यह किस प्रकार की अहिंसा है? ऐसा लगता है हमने अहिंसा को स्वार्थी मात्र बना दिया है। जहाँ सिर्फ स्वार्थ का प्रश्न होगा वहाँ मनुष्य को हिंसा करने में संकोच नहीं होता और जहाँ स्वार्थ में बाधा नहीं पहुँचती, वहाँ अहिंसा का अभिनय किया जाता है। यह अहिंसा सिद्धान्त के प्रति अन्याय है। यदि हम अपने सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार से प्रायोगिक अहिंसा को अपनायें तो शान्ति के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। सामाजिक जीवन में व्यवसाय, उद्योग, नौकरी, खेती, आजीविका, सौन्दर्य प्रसाधन, भोजन, राजनीति, सुरक्षा, विधि-व्यवस्था, कानून, प्रशासन, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में अहिंसा की उपयोगिता पर वर्तमान युगीन विचार आवश्यक है। यहाँ प्रमुख क्षेत्रों पर वर्तमान युगीन विचार करते हैं -
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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