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________________ 116 अहिंसा प्रशिक्षण के चार आयाम जहाँ कुछ विद्वान् मानस-परिवर्तन, संरचनात्मक परिवर्तन, व्यक्तिवादी प्रशिक्षण एवं सामूहिक प्रशिक्षण को एकलरूप में रेखाङ्कित करते हैं, वहीं कुछ महापुरुषों की अवधारणा एक संयुक्त प्रारूप के प्रस्तुतिकरण पर बल देती है। उनके द्वारा विकसित अहिंसा प्रशिक्षण की चतुरायामी अवधारणा, मात्र व्यक्ति या मात्र समाज तक नहीं पहुँचती है, पर दोनों को एक साथ समाहित करती है । समग्रता के इन चार आयामों में हृदय परिवर्तन, दृष्टिकोण परिवर्तन, जीवनशैली परिवर्तन एवं तदनुरूप संरचनात्मक परिवर्तन (व्यवस्था परिवर्तन) सम्मिलित हैं। 1. हृदय परिवर्तन अहिंसा प्रशिक्षण का प्रथम आयाम है। हृदय परिवर्तन । हृदय परिवर्तन का अर्थ है भाव परिवर्तन । हृदय परिवर्तन का पहला सूत्र है - निषेधात्मक भावों के परिवर्तन का प्रशिक्षण । निषेधात्मक भावों के कारण ही मनुष्य अहिंसा के प्रति आश्वस्त नहीं हो पाता है। निरन्तर इसी तरह का भाव बने रहने के कारण वह मनोवैज्ञानिक रूप से हिंसक विचारों के दबाव में जीवन व्यतीत करता है। हृदय परिवर्तन का पहला सूत्र उसके निषेधात्मक भावों को सकरात्मक बनाता है। हृदय परिवर्तन का दूसरा सूत्र है- शारीरिक स्वास्थ्य में मिताहार का प्रशिक्षण । ऐसे आहार का प्रशिक्षण जो मनुष्य के भीतर तामसिकता का विकास न करे बल्कि सात्विक आहार के माध्यम से उसके मन-मस्तिष्क में सात्विक भावों का संचार हो । निषेधात्मकभावों (संवेगों) के परिवर्तन के लिए निम्न निर्दिष्ट सिद्धान्तसूत्रों का प्रशिक्षण आवश्यक है 1. 2. 3. हिंसा के हेतु लोभ भय अहिंसा दर्शन वैर-विरोध परिणाम अधिकार की मनोवृत्ति शस्त्र-निर्माण और शस्त्र - प्रयोग प्रतिरोध की मनोवृत्ति
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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