SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टम अध्याय 113 इसके लिए अहिंसक विधियों और भावनाओं का विकास आवश्यक है। हिंसा की जड़ हिंसा के निमित्त बाहर परिवेश में भी हैं और अन्दर हमारी वृत्तियों में भी। पूर्व संचित संस्कार कर्म हमें हिंसा के लिए उकसाते हैं। कुछ कारण मानव में हैं, कुछ समाज में हैं। हिंसा का मूल कारण या उपादान मनुष्य में स्वयं है तथा उसको उद्दीप्त करने वाले निमित्त परिवेश या समाज में भी निहित हैं। आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक कारण भी हिंसा को प्रोत्साहन देते हैं। विषमता, बेरोजगारी, शोषण, दरिद्रता, अतिभाव, विलासिता आदि ऐसे आर्थिक कारण या निमित्त हैं, जिनसे व्यक्ति में निहित उपादान को उत्तेजना मिलती है, जो हिंसा भड़काने में निमित्त बनते हैं। हिंसा को भड़काने में सामाजिक विकृतियाँ, जाति-वर्णभेद, अस्पृश्यता, विषम परिस्थितियाँ, कुरूढ़ियाँ, दासता आदि का भी बहुत बड़ा हाथ रहता है। राजनीति में सैद्धान्तिक आतङ्कवाद तथा व्यावसायिक आतङ्कवाद हिंसा की आग में घी डालने का काम करते हैं। साम्प्रदायिक कट्टरता भी हिंसा भड़काती है। ये बाह्य कारण व्यक्ति के आन्तरिक कारणों को उकसाते हैं। व्यक्ति के भीतर हिंसा के अनेक कारण हैं। उसमें मुख्य हैं - व्यक्ति की अनेक विकृत वृत्तियाँ । निषेधात्मकभाव, क्रूरता, भय, ईर्ष्या, क्रोध, अहङ्कार, लोभ आदि विकृत वृत्तियाँ हिंसा को जन्म देती हैं। व्यक्ति में हिंसा का दूसरा महत्वपूर्ण कारण है - अपने मत का दुराग्रह एवं स्वयं को ही सही समझने और अपने से भिन्न मतवाले को गलत समझने का दृष्टिकोण, अन्ततः वह हिंसा को प्रोत्साहित करता है, हिंसा को पोषण देता है। व्यक्ति की जीवनशैली का भी हिंसा से बहुत गहरा सम्बन्ध है। सुविधावादी, असंयमित, भोगप्रधान जीवनशैली हिंसा और स्वार्थान्धता को उत्तेजित करती है।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy