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________________ 112 अहिंसा दर्शन की प्रगति और शान्ति के लिए ही लड़ते हैं। जो अपने धर्म की रक्षा के लिए दूसरे धर्मों पर प्रहार कर रहे हैं, वे भी यही मानते हैं कि वे नैतिकता की रक्षा और आपने धर्म के वर्चस्व के लिए लड़ रहे हैं। अधिकांशतः हिंसा करने के पहले उस हिंसा के पक्ष में एक नैतिक तर्क खड़ा किया जाता है और उस हिंसा को उचित बतलाकर हिंसा को अंजाम दिया जाता है। यह कितना बड़ा अज्ञान और कितनी बड़ी भ्रान्ति है कि हम बर्बरता से मानवता विकसित करना चाहते हैं। हम तो खोटे काम भी उनका अच्छा नाम देकर करने में संकोच नहीं करते। उद्देश्य होता है मछली, मुर्गा, सूअर का माँस प्राप्त करने के लिए उन्हें मारने का और नाम देते है 'मत्स्य पालन उद्योग, मुर्गी पालन, सूअर पालन उद्योग। इसी तरह बाज़ार में कीड़ों आदि को मारने के लिए 'कीट नाशक दवायें' बिकती हैं। तब यह प्रश्न मन में अवश्य उठता है कि 'दवायें' तो जान बचाने वाली चीजें होती हैं, उनका सही नाम होना चाहिए कीट नाशक ज़हर', किन्तु बाज़ार का मनोविज्ञान यह है कि 'दवाई' के नाम पर ज़हर भी बिक जाता है। ज़हर' के नाम पर 'ज़हर' बिकना मुश्किल होता है। यह वह तर्क है जहाँ 'हिंसा', 'अहिंसा' का नकाब पहनकर आती है। आश्चर्य तब और होता है जब रोजगार के अवसर बढ़ाने के नाम पर सरकारी स्तर पर इन क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक अनुदान प्रदान किया जाता है। दो राष्ट्र इसलिए युद्ध रोके हुए हैं कि दोनों के पास ऐसे जैविक और परमाणु हथियार हैं कि उनके प्रयोग से पलक झपकते ही सम्पूर्ण राष्ट्र तबाह हो सकता है। शान्ति इसलिए है कि दोनों को एक-दूसरे से समान भय है। भय से उत्पन्न शान्ति, अत्यन्त तनावपूर्ण होती है, उसे शान्ति और अहिंसा का नाम देना उचित नहीं होगा। अतः इस विश्वास और भावना को विकसित करना बहुत जरूरी है कि हिंसा का स्थायी समाधान हिंसा प्रशिक्षण या हिंसक सामग्री से कभी सम्भव नहीं है। क्योंकि हिंसा से कभी हिंसा दूर नहीं होती।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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