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________________ अष्टम अध्याय अहिंसा प्रशिक्षण की अवधारणा पूरी दुनिया में अहिंसा के सैद्धान्तिक और हिंसा के व्यवहारिक पक्ष ज्यादा हैं। धर्मग्रन्थों और महापुरुषों के विचारों और पुस्तकों में अहिंसा के विचार भरे पड़े हैं किन्तु जितने बड़े स्तर पर अहिंसा पर विचार हुआ है, उतने अधिक स्तर पर उसके प्रयोग नहीं हो पाये हैं। सैद्धान्तिक रूप से कही गयी बातों का यदि दस प्रतिशत भी प्रयोग में रहा होता तो हिंसा इतनी भयावह नहीं होती। कई स्थलों पर उत्कृष्ट अध्यात्म की चर्चा के बाद भी माँ अपने होने वाले बच्चे की भ्रूण हत्या तक करवा देती है। आज भी बेटा-बेटी में भेद करने वाला भारतीय समाज सदियों की अहिंसामयी आध्यात्मिक विरासत को एक मिनट में स्वाहा कर देता है। इसका अर्थ यह है कि सिद्धान्त और व्यवहार में काफी दूरियाँ हैं । हम सोचते या कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। इस तरीके से हम अहिंसा की चर्चा तो कर सकते हैं किन्तु उसके लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते। आत्मतत्त्व की प्राप्ति के लिए अहिंसा का मार्ग उपयोगी है; अत: वैयक्तिकरूप से महान लोगों ने उसका प्रयोग अपने जीवन में किया और सफल हुए। इस कार्य के लिए आरम्भ में साधकदशा में उन्हें उनके गुरु या आचार्य के सान्निध्य में प्रशिक्षण भी मिलता है, जो उन्हें लक्ष्य प्राप्त कराने में सहायक बनता है। बन्दूक की नोक पर शान्ति की स्थापना जब यह माना जाता है कि अहिंसा आत्मकल्याण के लिए तो उपयोगी है ही, साथ ही यह हमारे पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय या वैश्विक समुदाय की समस्याओं का भी एकमात्र समाधान है, तब प्रश्न उठता है कि
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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