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________________ सप्तम अध्याय 109 बताना होता है। गाँधीजी की तरह उन्होंने राजनीति, अर्थ, विज्ञान और धर्म को अध्यात्म से जोड़ना चाहा। बर्टेण्ड रसेल ने उनके जीवन को 'मानवीय मामलों में चेतना की भूमिका का प्रतीक' बताया था। विनोबाजी ने अहिंसा के आधार पर जो भी आन्दोलन चलाए, उसमें वे सफल रहे और उन्हें अत्यधिक ख्याति भी प्राप्त हुई। आचार्य विनोबा जैनधर्म की अहिंसा से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने जैनधर्म के सभी सम्प्रदाय के आचार्यों से निवेदन करके सर्व सम्मतिपूर्वक 'समणसुत्तं' नामक ग्रन्थ का निर्माण करवाया। इस ग्रन्थ को उन्होंने जैनगीता के नाम से पुकारा। 'समणसुत्तं' का सङ्कलन महान कृति 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' के रचनाकार क्षुल्लकश्री जिनेन्द्र वर्णी ने किया था। आचार्य विनोबा अपना अन्त समय अहिंसा की आराधना में ही बिताना चाहते थे; अतः उन्होंने संयम के प्रतीक 'सल्लेखना' व्रत को लेकर अत्यन्त संयम तथा आत्मश्रद्धा के साथ अपने शरीर का त्याग किया। विनोबा जी ने अहिंसा, दया, करुणा, अध्यात्म और बंधुता और समग्र जीवन के सार का प्रयोग मूलभूत समाज परिवर्तन तथा सम्पत्ति पर आधारित सम्बन्ध, संस्थानिक ढांचे, परम्परा एवं व्यवहार के पूर्व निर्मित आग्रह को बदलने के लिए किया। उन्होंने वर्तमान आर्थिक सम्बन्धों की विषमता के प्रति सचेत करने, सामुदायिक चेतना पर आधारित नए सम्बन्धों को विकसित करने तथा कार्यों, आय और जीवन स्तर में समानता लाने के लिए वास्तविक क्रांतिकारी शक्ति का प्रयोग एक साधन के रूप में किया। इस कार्य के लिए वे सदैव याद किये जायेंगे।
SR No.034026
Book TitleAhimsa Darshan Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherLal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year2012
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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