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________________ जहां प्रसिद्धि होती है वहां ध्यान चला जाता है। तीन जगत् बन गये-एक जम्बूकुमार का अपना जगत्, एक माता-पिता का जगत् और एक राजगृह का जगत्। तीनों में एक स्पंदन है, एक हलचल है। जम्बूकुमार का यात्रा पथ भिन्न है। वह भोग से त्याग की ओर जाने की बात सोच रहा है। माता-पिता उसे भोग में ले जाने की बात सोच रहे हैं। राजगृह के अनेक लोग अपना संबंध स्थापित करने की बात सोच रहे हैं। जम्बूकुमार के मन में क्या है, यह माता-पिता नहीं जानते। माता-पिता के मन में क्या है, इसे दूसरे लोग नहीं जानते। किसी के मन की बात जानना बड़ा मुश्किल होता है। सम्राट श्रेणिक ने एक गांव के लोगों को बुलाया, कहा-'यह बूढा हाथी है, इसे ले जाओ। खिलाओ पिलाओ। सब तरह से ध्यान रखो।' 'महाराज! ले जायेंगे।' 'पर मेरी शर्त यह है कि इसके मरने की सूचना मत देना।' सब स्तब्ध रह गये, सोचा-कैसे पूरा करें इस शर्त को, फिर भी आदेश था इसलिए ले गए। हाथी मरणासन्न था। दो-चार दिन में मर गया। सब घबराये। इकट्ठे हुए, सोचा-क्या करें। राजा के मन में क्या बात है, कोई नहीं समझ पा रहा है। इनके मन में क्या बीत रही है, इसे राजा नहीं समझ पा रहा है। सब चिंतातुर बने हुए थे। उन्होंने बुद्धिमान रोहक को बुलाया। रोहक ने कहा-'आप क्यों चिंता कर रहे है?' ____ 'रोहक! बहुत चिंता की बात है। सम्राट का आदेश है कि रोज मुझे हाथी के सुखद समाचार दो। जो मुझे आकर यह कहेगा कि हाथी मर गया, उसे मरना पड़ेगा, उसको फांसी की सजा मिलेगी। अब हम क्या कहें? सम्राट को यदि कहें कि हाथी ठीक है तो मुसीबत। यह कह दें कि हाथी मर गया तो सम्राट मार डालेगा कहने वाले को।' रोहक ने कहा-'यह बहुत छोटी बात है। क्यों चिंता करते हो। सब सुख से रोटी खाओ। मैं सम्राट के पास जा रहा हूं।' रोहक सम्राट के पास गया, नमस्कार किया। सम्राट् ने पूछा-'कहां से आये हो। क्यों आये हो?' रोहक बोला-'मैं अमुक गांव से आया हूं। हाथी का समाचार देने आया हूं।' 'बोलो, हाथी कैसे है?' 'बहुत अच्छा है।' 'क्या खिला रहे हो?' 'आज तो ऐसा हो गया कि वह खा नहीं रहा है। हम तो खिलाना चाहते हैं पर वह खा नहीं रहा है। पानी भी नहीं पी रहा है।' 'क्या वह खड़ा होता है।' 'नहीं, खड़ा भी नहीं होता। गाथा परम विजय की १००
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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