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________________ गाथा परम विजय की जैसे कोई अंजनगिरि है। वह अपने बड़े-बड़े दांतों से कभी पृथ्वी को खोद रहा है, विशाल वृक्षों को उखाड़ रहा है। पूरे उद्यान को तहस-नहस कर रहा है। बड़ा भयंकर रूप बना हुआ है। अंजनाद्रिसमो दंती, चलत् कर्णप्रभञ्जनः। स्थूलकायः कृतांताभो, नवाषाढ़पयोदवत्।। सैनिकों ने देखा हाथी आम, जामुन, चंदन के पेड़ों को उखाड़ता हुआ, भयंकर रूप धारण किए हुए जा रहा है। सैनिक लड़ाकू योद्धा थे, पास में शस्त्र भी थे पर हाथी के सामने जाने का साहस किसी का नहीं हुआ। सब डर रहे थे। कह रहे थे-'यह बड़ा खतरनाक है। जो भी सामने जाएगा, उसकी मौत निश्चित है।' राजा का आदेश है-'हाथी को मारना नहीं है। वह पट्टहस्ती है। उसे वश में करना है।' मारना हो तो आदमी दूर से भी मार देता है किन्तु मारना नहीं है, पकड़ना है, वश में करना है। सामने कौन जाए? जो जाए, उसका जीवन भी रहे या नहीं। कोई सैनिक सामने नहीं गया। सब इधर-उधर बगलें झांकने लगे। दूर से ही ललकारने लगे पर हाथी पर कोई नियंत्रण नहीं पा सका। एक हाथी पर विजय पाना कठिन है तो अपनी आत्मा पर विजय पाना कितना कठिन है? इसीलिए कितना ठीक कहा है-एक प्राणी दूसरे प्राणी पर विजय पाए, वह विजय है, पर परम विजय नहीं है। परम विजय है अपनी इंद्रियों को जीतना, अपने मन और वृत्तियों को जीत लेना। दूसरों के जीतने से भी कठिन कार्य है अपने आपको जीतना। आज हाथी योद्धाओं/सैनिकों द्वारा अजेय बन गया। उसे जीतने की ताकत किसी में नहीं रही। सब कतरा रहे हैं, सबको अपने प्राण प्यारे लगते हैं। हर आदमी जीना चाहता है सव्वे जीवा वि इच्छंति, जीविउं न मरिज्जिउं। ___ महावीर की वाणी में एक शाश्वत वृत्ति का उद्गान हुआ है-सब जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। सव्वे पियाउया सुहसाया दुहपडिकूला। सब सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता। प्राण सबको प्यारे हैं। उद्यान में फंसे सब लोगों को चिन्ता है-घर का क्या होगा? परिवार का क्या होगा? धन का क्या होगा? यह चिन्ता मनुष्य को बलहीन बना देती है। कोई भी आगे नहीं बढ़ा, हाथी पर नियंत्रण नहीं पा सका। योद्धा दोनों ओर खड़े हैं, एक-दूसरे का मुंह ताक रहे हैं। गौरमास्यं सुयोद्धारः, पश्यन्ति स्म परस्परम्। विमनस्का बभुस्तत्र, निरुत्साहनिरुद्यमाः।। एक-दूसरे को देखते हुए मानो पूछ रहे हैं-आज क्या हुआ? बल कहां चला गया? बोल नहीं रहे हैं पर नेत्रों की भाषा में कह रहे हैं। आंख की भाषा अलग होती है, जीभ की भाषा अलग होती है। कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें जीभ नहीं कह पाती, किन्तु आंख कह देती है। सब एक-दूसरे को आंखों से निहार रहे हैं, पर कोई आगे नहीं बढ़ रहा है।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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