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________________ जम्बूस्वामिकुमारोऽसौ, महावीर्यो महाबलः। तस्थौ तत्र यथास्थाने, न चचाल ततो मनाक्।। , ___दाएं-बाएं सैनिकों की पंक्तियां चल रही हैं। बीच में मदांध हाथी उखाड़ता-पछाड़ता चला जा रहा है। हाथी जिस मार्ग पर आगे बढ़ रहा है, उसी मार्ग पर जम्बूकुमार क्रीड़ा कर रहे थे। जम्बूकुमार ने देखा हाथी आ रहा है। वे रास्ते में सामने खड़े हो गए, जैसे एक जिनकल्प मुनि खड़ा होता है। जिनकल्प मुनि का विधान है-वह रास्ते में चल रहा है। सामने कोई शेर आ जाए, चीता आ जाए, वह अपना मार्ग छोड़ कर ___ इधर-उधर नहीं जाता। वह डरेगा नहीं। जम्बूकुमार ने भी ऐसा ही किया। छोटी अवस्था, कुमार अवस्था में जिनकल्प का सा उदाहरण प्रस्तुत कर दिया। भयंकर हाथी के सामने खड़े हो गए। न इधर गए, न उधर। सब लोगों ने आश्चर्य के साथ देखा यह युवक कौन है? क्या यह मरना चाहता है? इतना भयंकर हाथी विनाश लीला रचता हुआ आ रहा है और यह रास्ते के बीच में खड़ा है? जम्बूकुमार नहीं हटे। क्यों नहीं हटे? उनमें बल था। हमारे जीवन में सबसे पहली शक्ति है-शरीर का गाथा .. परम विजय की बल। शरीरबल का मूल आधार है हमारा अस्थि-संस्थान। जैन दर्शन में अस्थि रचना पर बहुत विस्तार से विचार किया गया। छह प्रकार के संहनन होते हैं, उनमें सबसे शक्तिशाली संहनन होता है-वज्रऋषभनाराच। जिसका अस्थि-संस्थान इतना मजबूत होता है वह व्यक्ति डरता नहीं है, घबराता नहीं है, भागता नहीं है, हार नहीं मानता, विजयी बनता है। उसका शरीरबल अमाप्य होता है। शरीरबल और आत्मबल दोनों का गहरा संबंध है। साधना के क्षेत्र में भी शरीरबल का महत्त्व है। ___पूछा गया-शुक्लध्यान कौन कर सकता है? शुक्लध्यान की विशिष्ट अवस्था में वह जा सकता है जिसका संहनन वज्रऋषभनाराच संहनन है। हड्डियां इतनी मजबूत कि हथौड़े से मारो तो भी टूटती नहीं हैं। वर्तमान का अस्थि-संस्थान इतना कमजोर है कि हथौड़े की जरूरत ही नहीं है। थोड़ा सा गिरा, पूरा गिरा भी नहीं और हड्डी टूट गई। कभी-कभी बिना गिरे ही हड्डी टूट जाती है। इतना कमजोर है अस्थिसंस्थान। जितना अस्थि-संस्थान कमजोर, उतना ही मनोबल कमजोर, उतना ही आंतरिक ज्ञानबल कमजोर। शुक्लध्यान वज्रऋषभनाराच संहनन में होता है। विशिष्ट साधना वज्रऋषभनाराच संहनन में होती है। केवलज्ञान वज्रऋषभनाराच संहनन में होता है। ___जम्बूकुमार का संहनन वज्रऋषभनाराच था। ऐसी वज्र कील और ऐसा हड्डियों का ढांचा जुड़ा हुआ था कि एक बार तो वज्र की चोट करे तो भी टूटेगा नहीं। वज्रास्ति बंधनः सोऽयं, वज्रकीलश्च वज्रवत्। वज्रेणापि न हन्येत, का कथा कीटहस्तिनः।।
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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